'न तैयारी, न इनोवेशन, न ढंग के मुद्दे...', कितना सही था अविश्वास प्रस्ताव पर PM मोदी का विपक्ष पर तंज?
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मणिपुर हिंसा पर मोदी सरकार को घेरने निकला विपक्ष खुद अपने ही बनाए जाल में फंस गया. कहा जा रहा है कि विपक्ष लोकसभा में सत्ता पक्ष को बुरी तरह घेर सकता था पर ऐसा नहीं हुआ. तो क्या पीएम मोदी ने जो इंडिया पर तंज कसा था वो सही था. ऐसा क्यों और कैसे हुआ विस्तार से जानिए.
मणिपुर हिंसा पर कांग्रेस और इंडिया की प्लानिंग धरी की धरी रह गई. लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर जो मुकाबला देश की आम जनता को देखने को मिला वो ऑस्ट्रेलिया और केन्या के बीच क्रिकेट मैच के जैसा हो गया. लोकसभा के मॉनसून सत्र की शुरुआत से ही विपक्ष लगातार पीएम से मणिपुर हिंसा पर बोलने को कह रहा था. पीएम की ओर से कोई जवाब मिलते न देख विपक्ष को लगा कि उसे बीजेपी सरकार को घेरने का बढ़िया मुद्दा मिल गया. विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर रहा कि वो जानबूझकर संसद में मणिपुर हिंसा पर बहस नहीं चाहता है. अंतत : विपक्ष मोदी सरकार को घेरने के इरादे से अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया.
मणिपुर हिंसा पर सरकार से जवाब मांगता विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव के नाम एक बारगी तो सत्ता पक्ष पर हावी नजर आया. अविश्वास प्रस्ताव पर जीत तय होने के बावजूद भी सरकार बैकफुट नजर आ रही थी. लेकिन एनडीए को घेरने के फेर में इंडिया खुद चक्रव्यूह में फंस गया. कहां तो होना था कि विपक्ष सरकार को जनता के कटघरे में खड़ाकर आरोपों की बौंछार लगाता जिसका जवाब देना मुश्किल हो जाता. पर एनडीए सरकार ने आपदा में अवसर ढूंढ लिया और अपने तर्कों की बौंछार से हमलावर विपक्ष को ही डिफेंसिव मोड में पहुंचा दिया. पीएम मोदी के ही शब्दों में कहें तो कोई तैयारी नहीं , कोई इनोवेशन नहीं , न कोई घेरने के लिए ढंग के मुद्दे तो अविश्वास प्रस्ताव लाया ही क्यों? जाहिर है कि कांग्रेस और विपक्ष ने 2024 के चुनावों के पहले जनता की अदालत में सरकार को घेरने का एक बढ़िया मौका गंवा दिया. तो ऐसा क्यों हुआ?
राहुल का शुरुआत में ही पीछे हटना
अविश्वास प्रस्ताव के पहले ही दिन जिस आक्रामकता के साथ कांग्रेस ने बैटिंग की थी उससे यही लगा था कि इस बार मुकाबला जोरदार होने वाला है. राहुल की संसद में बहाली और इंडिया गठबंधन के एकजुट होने से ऐसा लगना लाजिमी था.कांग्रेस पार्टी ने ट्वीट कर ये जानकारी दे दी थी कि मंगलवार को अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी सरकार को घेरने की शुरुआत खुद करेंगे. पर राहुल गांधी ने जैसे पहले दिन बोलने से विद्ड्रा कर लिया, ये संदेश चला गया था कि लगता है कि तैयारी ठीक से नहीं हुई थी.हालांकि राहुल की टीम के मैनेजरों ने इसे रणनीति बताकर अपने नेता की छवि बचाने की कोशिश की पर शायद यह कोशिश सिरे नहीं चढ़ी. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि ऐसे मौके सालों में एक बार मिलते हैं जिसे राहुल ने खो दिया. गोगोई ने विश्वास प्रस्ताव पटल पर रखा और सबकी नजरों में आ गए. हो सकता है कि राहुल गांधी पहले दिन बोलते तो तस्वीर कुछ और होती. सलामी बल्लेबाज जब बढ़िया खेल जाता है तो पूरी टीम बढ़िया खेलती है. ऐसा माना जाता है जो अकसर सही होता है.
राहुल का संक्षिप्त भाषण और नाराज होकर निकल लेना
राहुल गांधी अपने भाषण के कीमती समय में पहले इधर-उधर की बातें करते रहे. काफी देर तक वो भारत जोड़ो यात्रा के किस्से सुनाते रहे जबकि उन्हें मणिपुर पर शुरू से ही फोकस होना चाहिए था.जब मणिपुर पर बोलने का मौका आया तो भारत माता की हत्या, हनुमान ने नहीं रावण के अहंकार ने लंका जलाया और राम ने नहीं रावण को मारा उसके अहंकार ने मारा था कि नई थियरी दे दी. राहुल ने ये सब ऐसे समय कहा, जब उनके खास क्षत्रप राम कथा सुन रहे हैं और बाबाओं के दरबार में मत्था टेक रहे हैं. ऐसे मौके पर तमाम वक्ता अपना टाइम बीत जाने के बाद भी अपनी बात रखने के लिए अध्यक्ष से रिक्वेस्ट करते हुए भाषण जारी रखते हैं. शुरुआती भाषण को छोड़े दें जल्द ही राहुल गांधी ने लय ताल पकड़ ली थी. थोड़ी देर और टिकते तो हो सकता है कि ऐतिहासिक स्पीच साबित होती. राजनीतिक विष्लेषक शंभूनाथ शुक्ला कहते हैं कि राहुल को अपने कीमती समय का सही मैनेजमेंट करना चाहिए था. मणिपुर हिंसा पर थोड़ा और फोकस करना चाहिए था. मणिपुर में सरकार की कमजोरियों को उजागर करने के लिए फैक्ट्स रखे जाने चाहिए थे.
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