
दिल्लीवालों को लगेगा अब ज्यादा बिजली बिल का झटका, जानिए PPAC को लेकर क्या हुआ फैसला
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PPAC एक तरह का अधिभार है, जो बिजली कंपनियों को बाजार संचालित ईंधन की लागत में परिवर्तन होने पर क्षतिपूर्ति के लिए लिया जाता है. यह कुल एनर्जी कॉस्ट और बिजली बिल के फिक्स्ड चार्ज पर अधिभार के रूप में लागू होता है.
देशभर में रसोई गैस सिलेंडर के दामों में 50 रुपए की बढ़ोतरी के बाद अब दिल्ली में बिजली महंगी हो गई है. दिल्ली की बिजली वितरण कंपनियों ने ग्राहकों पर लगाए जाने वाले पावर पर्चेस एडजस्टमेंट कॉस्ट (PPAC) में 4 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है. ये नियम जून के मध्य से लागू किया जाएगा. इस बदलाव के बाद अब दिल्लीवासियों की जेब पर बिजली बिल का भार और बढ़ने वाला है.
बिजली विभाग के अधिकारी के मुताबिक बिजली वितरण कंपनियों (Discoms) ने कोयले और गैस की कीमतों में की गई बढ़ोतरी के चलते PPA कॉस्ट में भी इजाफा किया गया है. दिल्ली बिजली नियामक आयोग (DERC) ने भी इसकी मंजूरी दे दी है. हालांकि, DERC ने बढ़ोतरी के बाद कोई प्रतिक्रया नहीं दी है. PPAC का फॉर्मूला देश के 25 से ज्यादा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लागू है. इसलिए दिल्ली में बढ़ी कीमतों के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या बाकी राज्य भी इसे फॉलो करेंगे.
दरअसल, PPAC एक तरह का अधिभार है, जो बिजली कंपनियों को बाजार संचालित ईंधन की लागत में परिवर्तन होने पर क्षतिपूर्ति के लिए लिया जाता है. यह कुल एनर्जी कॉस्ट और बिजली बिल के फिक्स्ड चार्ज पर अधिभार के रूप में लागू होता है. एजेंसी के आधिकारिक सूत्र के मुताबिक DERC ने दिल्ली में 11 जून से 4 फीसदी PPAC बढ़ाने की मंजूरी दी है.
डिस्कॉम के मुताबिक 9 नवंबर 2021 को बिजली मंत्रालय ने निर्देश जारी किया था, जिसके मुताबिक सभी राज्यों के नियामक आयोग (दिल्ली के मामले में DERC) को बिजली क्षेत्र का मैकेनिज्म सुनिश्चित करने के लिए टैरिफ में ईंधन और बिजली खरीद लागत को स्वत: पास करने के लिए एक तंत्र बनाना होगा.
बता दें कि PPAC ईंधन की कीमतों में वृद्धि को ऑफसेट करने के लिए लगाया जाता है. PPAC की कीमतों में फिलहाल की गई बढ़ोतरी इंपोर्ट किए जाने वाले कोयले के सम्मिश्रण, गैस की कीमतों में वृद्धि और बिजली एक्सचेंज में कीमतें बढ़ने पर आधारित है. CERC के 12 रुपये प्रति यूनिट तक सीमित होने से पहले यह लगभग 20 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच गया था.
डिस्काम के अधिकारियों के मुताबिक 2002 के बाद दिल्ली डिस्कॉम के लिए बिजली खरीद की लागत में करीब 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस पर डिस्कॉम का कोई नियंत्रण नहीं है. जबकि इसी अवधि में खुदरा शुल्क में लगभग 90 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

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