दाऊद का वो दुश्मन जिसे 'डैडी' कहकर बुलाते थे गुर्गे, अब मांग रहा जेल से रिहाई
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मुंबई में एक दौर ऐसा था, जब दाऊद इब्राहिम और अरुण गवली के गैंग एक दूसरे के खून के प्यासे थे. इनकी गैंगवार से पुलिस का काम आसान तो हो गया था. लेकिन आम जनता को इनकी कारस्तानियों से महफूज रखना पुलिस के लिए चुनौती थी.
जुर्म की दुनिया में सुपारी किंग के नाम से मशहूर रहे अरुण गवली ने अदालत से उसे रिहा करने की मांग की है. इसके पीछे उसने उम्र और खराब तबीयत का हवाला दिया है. अरुण गवली की अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथ पुरानी अदावत थी. इन दोनों की दुश्मनी का खामियाजा कई लोगों ने अपनी जान देकर भुगता है. दरअसल, मायानगरी मुंबई में एक दौर ऐसा भी था, जब दाऊद और गवली के गैंग एक दूसरे के खून के प्यासे थे. इनकी गैंगवार से पुलिस का काम आसान तो हो गया था. लेकिन आम जनता को इनकी कारस्तानियों से महफूज रखना पुलिस के लिए चुनौती थी. इसी दौरान एक ऐसी वारदात को अंजाम दिया गया था, जिसने दाऊद और गवली के बीच दुश्मनी की खाई को और गहरा कर दिया था.
70 के दशक से शुरू होती है कहानी अरुण गवली और दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी को समझने के लिए हमें फ्लैशबैक यानी 70 के दशक में जाना होगा. उन दिनों वरदराजन मणिस्वामी मुदलियार मुंबई अंडरवर्ल्ड का एक बड़ा नाम था. कांट्रेक्ट किलिंग, तस्करी और डाकयार्ड से माल साफ करना वरदराजन का मुख्य धंधा था. मटके के धंधे में भी उसने बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया था. लेकिन 1980 में वरदराजन ने जुर्म की दुनिया को अलविदा कह दिया. इससे पहले 1977 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से प्रभावित होकर हाजी मस्तान ने अपराध की दुनिया छोड़ कर सियासी दुनिया में कदम रख दिया था.
मुंबई का बेताज बादशाह था दाऊद इन सभी के चले जाने का सबसे ज्यादा फायदा मुंबई पुलिस के कांस्टेबल इकबाल कास्कर के बेटे दाऊद इब्राहिम को मिला. यही वो दौर था, जब दाऊद मुंबई का बेताज बादशाह बन गया था. लेकिन उसी दौरान मुंबई की गलियों का एक टपोरी गुंडा तेजी से जुर्म की दुनिया में आगे बढ़ रहा था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो दाऊद जैसे बड़े माफिया डॉन के सामने एक चुनौती बन जाएगा.
दाऊद और गवली के बीच गैंगवार वो 90 के दशक की शुरुआत थी. पूरे मुंबई में दाऊद इब्राहिम के नाम का सिक्का चल रहा था. तभी कुछ जगहों पर एक नए गैंग ने रंगदारी और वसूली का काम चालू कर दिया. जब दाऊद गैंग के लोगों ने उसे रोकने की कोशिश की, तो वो डी गैंग से भिड़ गए. यहीं से मुंबई का एक टपोरी अचानक सुर्खियों में आया. जिसका नाम था अरुण गवली. उनके बीच गैंगवार होने लगी. गुंडे मवाली एक दूसरे की जान के दुश्मन बन चुके थे. वो लोग दुश्मन गैंग के गुर्गों को हर वक्त तलाशते रहते थे, ताकि उनका खात्मा किया जा सके. उनका एक ही मकसद था मुंबई पर राज करना.
मौत का खूनी खेल डी गैंग के तस्करी, रंगदारी और वसूली के मामलों में गवली का गैंग दखल देने लगा था. ये बात दाऊद को नागवार गुजर रही थी. उसने अपने गुर्गों को अलर्ट कर दिया और गवली गैंग के खात्मे का फरमान भी सुनाया. नतीजा ये हुआ कि उस दौर में दाऊद इब्राहिम और अरुण गवली के गैंग हर वक्त मौत का खेल खेलने के लिए तैयार रहने लगे. वो एक दूसरे के खून के प्यासे हो चुके थे. ये बात पुलिस भी जान चुकी थी. इस लिए मुंबई पुलिस के अफसर भी बेफिक्र हो चुके थे. क्योंकि पुलिस का लगता था कि ये गैंग आपस में लड़-मरकर खत्म हो जाएंगे.
दाऊद पर हमले की सूचना इसी दौरान अरुण गवली ने एक ऐसी चाल चली कि दाऊद ने कभी सोचा भी नहीं था. गवली ने दाऊद के एक गुर्गे को इस्तेमाल किया और उसे एक खबर पहुंचाई. दाऊद के गुर्गे ने उसे जाकर इत्तिला दी कि अरुण गवली उस पर हमला करने की तैयारी कर रहा है. ये बात सुनकर डी गैंग ने अपना पूरा ध्यान दाऊद इब्राहिम की सुरक्षा पर लगा दिया. अब डी गैंग अलर्ट पर था.
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