
तारिक 19 साल बाद पिता जिया उर-रहमान की कब्र पर पहुंचे, कल ढाका यूनिवर्सिटी जाएंगे
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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान ऐसे समय में वतन लौटे हैं जब देश अस्थिरता और हिंसा के दौर से गुजर रहा है. देश में राजनीतिक उथल-पुथल जारी है और देश में फरवरी में आम चुनाव होने हैं.
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान 17 साल बाद गुरुवार को वतन लौट आए. उन्होंने शुक्रवार को ढाका में अपने पिता और बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की कब्र पर जाकर श्रद्धांजलि दी.
तारिक रहमान लाल-हरे रंग की बुलेटप्रूफ बस में जिया उद्यान पहुंचे, जहां उन्होंने अपने पिता की कब्र पर पुष्पांजलि दी और उनकी आत्मा की शांति के लिए दुआ की. इस दौरान बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश, रैपिड एक्शन बटालियन, पुलिस और सेना के सदस्यों ने मीडियाकर्मियों और अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं को कब्रिस्तान और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक दिया.
बीएनपी के संस्थापक जियाउर रहमान एक बांग्लादेशी सैन्य अधिकारी थे, जिन्होंने 1977 से लेकर 1981 तक बांग्लादेश के छठे राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था. उन्होंने 1978 में लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेना से सेवानिवृत्ति ली थी.
देश के पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की 30 मई 1981 को हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या सैन्य तख्तापलट की कोशिश के दौरान की गई. उस समय वे चिटगांव के एक आधिकारिक दौरे पर थे और सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे.
बता दें कि 60 साल के तारिक रहमान गुरुवार को बांग्लादेश लौटे हैं. वह 2008 से लंदन में अपने परिवार के साथ रह रहे थे. वह आखिरी बार 2006 में अपने पिता की कब्र पर गए थे.
तारिक रहमान शनिवार को उस्मान हादी की कब्र पर भी जाएंगे. वह ढाका यूनिवर्सिटी में हादी की कब्र पर जाएंगे. इसके बाद वह चुनावी अभियान की शुरुआत कर देंगे. वह देश में अपना वोटर कार्ड बनवाने के लिए रजिस्ट्रेशन की औपचारिकताएं भी शुरू करेंगे.

तारिक की बांग्लादेश वापसी में खास प्रतीकात्मकता थी. जब वो ढाका एयरपोर्ट से बाहर आए तो उन्होंने जूते उतारकर थोड़ी देर के लिए जमीन पर खड़े हुए और हाथ में मिट्टी उठाई . ये असल में अपने देश के प्रति सम्मान दिखाने का तरीका था. उन्होंने रिसेप्शन में साधारण प्लास्टिक की कुर्सी को चुना और विशेष कुर्सी हटा दी, जो पिछले समय के भव्यता और 'सिंहासन मानसिकता' से दूरी दिखाता है.

गुजरात में 1474 के युद्ध में तीतर की रक्षा के लिए राजपूतों, ब्राह्मणों, ग्वालों और हरिजनों की एकजुट सेना ने चाबड़ जनजाति के शिकारीयों से लड़ाई लड़ी, जिसमें 140 से 200 लोग मारे गए. यह घटना भारतीय सभ्यता में शरण देने और अभयदान की परंपरा को दिखाती है. बांग्लादेश जो बार-बार हसीना को सौंपने की मांग कर रहा है, उसे भारत के इतिहास के बारे में थोड़ी जानकारी ले लेनी चाहिए.

खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान सत्रह साल बाद बांग्लादेश लौटे हैं. वे लंबे समय तक लंदन में निर्वासित रह चुके थे और अब राजनीति में अहम भूमिका निभाने की तैयारी में हैं. तारिक ने अपनी मातृभूमि लौटकर एक बड़े जनसमूह के बीच रोड शो किया जहां लाखों कार्यकर्ताओं ने उन्हें सम्मानित किया. हाल ही में देश में राजनीतिक हलचल तेज हुई है. शेख हसीना की पार्टी चुनाव से बाहर हुई है और बीएनपी मजबूत दावेदार बनकर उभरी है.

जब पहली विश्वयुद्ध में 1914 के क्रिस्मस के दौरान ब्रिटिश और जर्मन सैनिकों ने बिना किसी आदेश के संघर्ष विराम किया था, यह घटना युद्ध के बीच मानवता और शांति की मिसाल बनी. उस समय ट्रेंच युद्ध में सैनिक एक-दूसरे से दूर और भयभीत थे. लेकिन क्रिस्मस की रात को दोनों ओर से गाने और जश्न के बीच सैनिकों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया, मृत साथियों को सम्मान दिया और फुटबॉल भी खेला.









