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'जितनी आबादी, उतनी हिस्सेदारी...', जातिगत जनगणना के बाद आरक्षण में किन बदलावों की होने लगी है मांग
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पिछले 3 साल से बिहार की नीतीश कुमार सरकार जिस जातिगत जनगणना को कराने की जिद पर अड़ी थी, उसके आंकड़े अब जारी कर दिए गए हैं. राज्य सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 27% अन्य पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग हैं. यानी, ओबीसी की कुल आबादी 63% है.
बिहार में किस जाति की कितनी आबादी है? इसके आंकड़े आ गए हैं. नीतीश कुमार की सरकार ने सोमवार को इसके आंकड़े जारी कर दिए.
आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है. इनमें 27% अन्य पिछड़ा वर्ग और 36% अत्यंत पिछड़ा वर्ग है. यानी, ओबीसी की कुल आबादी 63% है. अनुसूचित जाति की आबादी 19% और जनजाति 1.68% है. जबकि, सामान्य वर्ग 15.52% है.
नीतीश सरकार साढ़े तीन साल से जातिगत जनगणना करवाने की जिद पर अड़ी थी. सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातिगत जनगणना का प्रस्ताव विधानसभा और विधान परिषद से पास करवा लिया था. लेकिन इस साल जनवरी में जातिगत जनगणना का काम शुरू हुआ. हालांकि, सरकार इसे जनगणना नहीं बल्कि 'सर्वे' बताती है.
'जितनी आबादी, उतना हक'
इस साल अप्रैल में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया था. उन्होंने इस दौरान नारा दिया था- 'जितनी आबादी, उतना हक'.
इसके साथ ही राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि सबका साथ-सबका विकास की बात करने वाली सरकार सभी जातियों का सही विकास करने के लिए जाति आधारित जनगणना कराने के खिलाफ है.
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