
जब सब ठीक है तो नीति आयोग की बैठक से नीतीश कुमार ने दूरी क्यों बनाई?
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नीतीश कुमार का दिल्ली में रहते हुए भी नीति आयोग की बैठक से दूरी बनाना बीजेपी पर उनके भरोसे का संकेत देता है. एनडीए के मुख्यमंत्रियों की बैठक में उनकी सक्रिय भागीदारी, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बढ़ती नजदीकी नई रणनीति का हिस्सा लगती है.
नीतीश कुमार पहले भी नीति आयोग की बैठक स्किप कर चुके हैं. लेकिन, तब और अब के राजनीतिक समीकरण बिल्कुल अलग हैं. ममता बनर्जी का नीति आयोग की बैठक में न आना अलग मामला है. ऐसा भी हुआ है कि ममता बनर्जी बैठक के बीच ही ये कहते हुए छोड़ कर निकल गई हैं कि बोलने नहीं दिया जाता. राहुल गांधी भी अक्सर बोलने न देने का आरोप लगाते रहे हैं.
24 मई को नीति आयोग की 10वीं बैठक बुलाई गई थी.ये ऑपरेशन सिंदूर के बाद, प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपालों के साथ ऐसी कोई पहली बैठक थी. ममता बनर्जी को लेकर तो नहीं, लेकिन नीतीश कुमार के न पहुंचने पर सबको हैरानी हुई. ज्यादा हैरानी इसलिए भी क्योंकि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन भी नीति आयोग की मीटिंग में शामिल हुए.
नीति आयोग नहीं, एनडीए मुख्यमंत्रियों की बैठक में शामिल
नीतीश कुमार पटना से ही तय करके निकले थे कि वो नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं होंगे. तब भी जब वो दिल्ली में मौजूद रहेंगे. लगातार दो दिन तक. नीति आयोग की बैठक से दूरी बनाने के सवाल उठने पर नीतीश कुमार ने कहा भी, हम नीति आयोग की बैठक के लिए नहीं आये हैं... प्रधानमंत्री और एनडीए के मुख्यमंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने आये हैं... एनडीए की बैठक का समय बढ़ा दिया गया है, और उसी बैठक में भाग लेंगे.
नीति आयोग की तरफ से सोशल साइट X पर प्रधानमंत्री मोदी का हवाला देते हुए कहा गया है, 'हमें विकास की गति बढ़ानी होगी… अगर केंद्र और सभी राज्य मिलकर टीम इंडिया की तरह काम करें तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है.
सही बात है. लेकिन, नीतीश कुमार ऐसी बैठक से दूरी क्यों बनाये, जबकि बिहार को तो विकास की ज्यादा ही जरूरत है. नीतीश कुमार तो बरसों से बिहार के लिए स्पेशल पैकेज मांगते रहे हैं. ये बात अलग है कि बार बार पाला बदलने के बाद भी केंद्र सरकार की तरफ से बिहार को वो नहीं मिल सका है. हां, चुनावी साल में आम बजट में मखाना आयोग जैसी सौगातें जरूर मिल चुकी हैं.

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