
जब भारत ने चंद्रमा पर जानबूझकर गिराया था अपना स्पेसक्राफ्ट, चांद पर पहुंचाया था तिरंगा, जानें पूरी कहानी
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भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान मिशन लॉन्च किया, क्योंकि इसने दुनिया को पृथ्वी की कक्षा के बाहर, किसी अन्य खगोलीय पिंड पर मिशन भेजने की अपनी क्षमताओं की घोषणा की. तब तक, केवल चार अन्य देश चंद्रमा दुनिया में एक मिशन भेजने में कामयाब रहे थे - अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान. इसके बाद भारत पांचवें स्थान पर रहा था.
14 नवंबर, 2008 की उमस भरी दोपहर... देश में एक ओर भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह की वजह से खुशी का माहौल था. दरअसल, राजकोट में इंग्लैड के गेंदबाजों को ध्वस्त करते हुए युवी पिच पर रनों की बौछार कर रहे थे. महज 78 गेंदों में 138 रनों की तूफानी पारी के साथ भारत ने इंग्लैंड को 158 रनों से हरा दिया और देश जश्न में डूब गया. ठीक उसी वक्त राजकोट से 1600 किलोमीटर दूर बेंगलुरु में माहौल तनावपूर्ण था.
देश भर में युवी के जयकार लगा रहे भारतीय प्रशंसकों को इसकी जानकारी नहीं थी कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) एक बड़ा धमाका करने वाला है. अंतरिक्ष एजेंसी जानबूझकर चंद्रमा पर एक स्पेसक्राफ्ट गिराने जा रही थी. भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान मिशन लॉन्च कर दुनिया को बता दिया था कि पृथ्वी की कक्षा के बाहर किसी अन्य खगोलीय पिंड पर वह भी मिशन भेज सकता है.
उस समय तक केवल चार अन्य देश अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान ही चंद्रमा पर मिशन भेजने में कामयाब हो सके थे. ऐसा करने वाला भारत पांचवां देश था.
इसरो ने चांद पर खोजा पानी
चंद्रयान-1 टेक्नोलोजी प्रदर्शन करने वाला मिशन था. इसने चंद्रमा की सतह पर पानी खोजा और इतिहास की किताबों में अपना नाम दर्ज करा लिया. मगर, इस मिशन से भारत को और भी कई लाभ हुए थे. अंतरिक्ष यान के अंदर 32 किलोग्राम का एक प्रोब था, जिसका एकमात्र उद्देश्य दुर्घटनाग्रस्त करना था. इसरो ने इसे मून इम्पैक्ट प्रोब कहा.
17 नवंबर, 2008 की रात को लगभग 8:06 बजे इसरो के मिशन नियंत्रण में बैठे इंजीनियरों ने मून इम्पैक्ट प्रोब को नष्ट करने की कमांड दी. चांद की खामोश दुनिया धमाके को महसूस करने वाली थी. चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई से मून इम्पैक्ट प्रोब ने अपनी अंतिम यात्रा शुरू की.

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