
जब बुद्ध की मुस्कान के साथ भारत ने दुनिया को दिखा दिया था बाहुबल...कहानी न्यूक्लियर ड्रीम पूरा होने की
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पोखरण में भारत परमाणु परीक्षण की तैयारी कर चुका था. इंदिरा गांधी फोन कॉल का इंतजार कर रही थीं. टेस्टिंग साइट पर डेटोनेशन टीम के चीफ पी दस्तीदार ने हाई वोल्टेज स्विच को ऑन किया तो करंट सप्लाई करने वाले मीटर को देख उनकी आंखें फटी रह गईं. यहां तो भयानक गड़बड़ी दिखाई दे रही थी. कुछ ही सेकेंड में दूसरे वैज्ञानिक उत्तेजना में बोले- Shall we stop? Shall we stop...
भारत की सरकारों को बुद्ध पूर्णिमा पसंद है. कांग्रेस हो या बीजेपी. इंदिरा हों या अटल. जगह पोखरण ही रही, तिथि भी बुद्ध पूर्णिमा ही थी और हुंकार भी एक थी. भारत के परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनने की. बुद्ध भारत के ज्ञानोदय और आत्म-साक्षात्कार दोनों के प्रतीक हैं. बुद्ध पूर्णिमा को ही विश्व को ज्ञान और करुणा का संदेश देने वाले सिद्धार्थ का जन्म हुआ था. जो सत्य की तलाश में निकले और फिर महात्मा बुद्ध हो गए.
बुद्ध के ब्रांड को भारत ने अपने सशक्तिकरण से जोड़ा और दुनिया को संदेश दिया कि शांति की स्थापना के लिए न्यूनत्तम प्रतिरोधक क्षमता (Minimum nuclear deterrence) जरूरी है. अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर तो 1953 में ही एटम फॉर पीस की थ्योरी दे चुके थे.
भारत को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाने का भगीरथ प्रयास तो 1944 में तब शुरू हुआ जब डॉ होमी जहांगीर भाभा ने 1944 में मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की लेकिन ये प्रयास मुकम्मल हुआ 18 मई 1974 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन जब बुद्ध एक बार मुस्कुराये (Smiling Buddha) थे.
Go ahead... क्या तुम्हें डर लग रहा?
भारत के पहले परमाणु परीक्षण के मुख्य हीरो ये थे होमी सेठना, जो कि एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन थे, पीके आयंगर जो कि इस प्रोजेक्ट के डिप्टी हेड थे. आयगंर को मदद कर रहे थे धातु विज्ञानी राज गोपाल चिदंबरम, वैज्ञानिक राजा रमन्ना और विक्रम साराभाई. बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 14 मई की रात को जिस न्यूक्लियर डिवाइस का परीक्षण होना था उसे अंग्रेजी अक्षर L के आकार में शाफ्ट में पहुंचा दिया गया था. अगले दिन होमी सेठना दिल्ली पहुंचे और उनका पड़ाव था तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का घर. सेठना ने मिसेज गांधी को कहा कि हमने डिवाइस को शाफ्ट में फिट कर दिया है. अब आप ये मत कहिएगा कि इसे बाहर निकालो क्योंकि ऐसा करना संभव नहीं है. अब आप आगे जाने से नहीं रोक सकती हैं. इंदिरा का जवाब था- Go ahead... क्या तुम्हें डर लग रहा है? सेठना बोले- बिल्कुल नहीं. 15 मई को सेठना इंदिरा से ग्रीन सिग्नल लेकर फिर पोखरण साइट पर पहुंचे.
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