जब दाऊद की अदालत में पहुंचे थे भारत के दो गुटखा किंग, 4 करोड़ देनी पड़ गई थी 'डॉन फीस'
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माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम जब भारत के दो गुटखा किंग की दुश्मनी को सुलझाने बैठा तो उसने 70 करोड़ की लड़ाई 7 करोड़ में सुलझा दी, लेकिन इस झगड़े को सुलझाने के एवज में दाऊद अपना तगड़ा कमीशन लेना नहीं भूला. इस विवाद को निपटाकर दाऊद ने इन बिजनेसमैन के सामने एक ऐसी शर्त रखी जिसे वे नकार नहीं सके.
गुटखे की तलब हिन्दुस्तानियों को ही नहीं बल्कि पाकिस्तानियों को भी होती है. आदत की इस शौकिया बीमारी से मुंबइया जितने परेशान हैं, उतने ही भयानक तरीके से ये बीमारी कराची के लोगों को लगी है. सुपारी, मसाले, तम्बाकू और चूने का ये कसैला और कैंसरकारी मिश्रण मुंह में जाते ही जोर का भभका मारता है तो दिमाग में एक तरह का 'हाई' क्रिएट होता है. इस 'हाई' की गिरफ्त में आया शख्स बड़ी मुश्किल से ही इस पुड़िया की कैद से बाहर निकल पाता है.
पाकिस्तानी आवाम को गुटखे की इस लत का आदी बनाने में भगोड़े दाऊद, उसके भाई अनीस, और भारत के दो गुटखा किंग की आपसी दुश्मनी का बड़ा रोल है.
पाकिस्तान में गुटखा इंडस्ट्री कैसे पनपी? अंडरवर्ल्ड से इसका क्या कनेक्शन है? कैसे हिन्दुस्तान के दो गुटखा किंग की अदावत दाऊद की अदालत में पहुंची? ये कहानी बंबई से शुरू दुबई पहुंचती है होकर फिर कराची जाकर पूरी होती है. इस कॉरपोरेट जंग में फिर जो 'इंसाफ' हुआ उसके बाद कराची में एक मॉडर्न गुटखा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की नींव पड़ी.
ये बात 22-25 साल पहले की है. भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापारिक संबंध कुछ खास नहीं थे. बावजूद इसके गुटखे की इस फैक्ट्री के लिए सारी तकनीक और मशीनरी मुंबई से कराची वाया दुबई पहुंची थी.
1971 तक गुटखा नहीं पान चबाते थे पाकिस्तानी
पाकिस्तान में गुटखे की कहानी देखें तो नजरें सिंध और ब्लूचिस्तान की समुद्री तटों तक जाती है. इसी सिंध प्रांत में कराची है जो पाकिस्तान का बिजनेस के साथ साथ गुटखा हब भी है. पाकिस्तान के समाचारपत्र द ट्रिब्यून में छपी की एक रिपोर्ट में सिंध यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ फतेह मोहम्मद बरफत कहते हैं 'पान की तरह गुटखा चबाना बंटवारे से पहले सिंध के रिवाज में शामिल नहीं था. धीरे धीरे लोगों को पान की लत लगी.'
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