
क्या 84 साल के मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश में हो रही उठापटक को संभालने के लिए सही चुनाव नहीं, क्यों उठ रही ये बात?
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बांग्लादेश पिछले कई महीनों से अस्थिर बना हुआ है. लोगों ने सड़कों पर उतरकर पहले तो नौकरियों से आरक्षण हटाने की मांग की, बाद में हंगामा इतना बढ़ा कि तख्तापलट ही हो गया. पूर्व पीएम शेख हसीना को आनन-फानन भारत में शरण लेनी पड़ी, वहीं सत्ता आ गई नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के हाथों में. हालांकि बांग्लादेश में अमन-चैन अब भी नहीं आ सका.
क्या मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश के पीएम पद के लिए फिट नहीं हैं? ये सवाल अंदर ही अंदर सुगबुगा रहा है. दरअसल लंबे हंगामे के बाद वहां शेख हसीना सरकार की सत्ता गई, और युनुस अंतरिम सरकार के मुख्य हो गए. लेकिन तीन महीने बाद भी देश में उथल-पुथल मची हुई है. फिलहाल हिंदुओं पर हिंसा की खबरें इंटरनेशनल मंचों तक जा रही हैं. इस बीच ये बात भी उठ रही है कि क्या यूनुस पद के लिए सही चुनाव नहीं थे? अगर वे नहीं, तो बांग्लादेश में कौन सा नेता लोकप्रिय है?
राजनैतिक उठापटक के बीच अगस्त में शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ गया. इस बीच खूब तामझाम के साथ मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया. इकनॉमिस्ट रह चुके यूनुस को अपने काम के लिए नोबेल मिल चुका है. बेहद मुश्किल समय में सत्ता संभाल रहे इस लीडर से उम्मीद की जा रही थी कि वे जल्द से जल्द देश को पटरी पर ले आएं, लेकिन वक्त के साथ इस उम्मीद पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
क्यों देश की अस्थिरता को रोकने में नाकाम लग रहे यूनुस लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि हसीना के जाने के बाद से बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा बढ़ी. वहां कथित तौर पर मंदिरों में भी तोड़फोड़ हो रही है. न्यूज18 की एक खबर के अनुसार, वहां गोपालगंज, मौलवीबाजार, ठाकुरगांव, दिनाजपुर, खुलना और खगड़ाछड़ी जैसे हिंदू बहुल इलाकों में अल्पसंख्यकों और मंदिरों पर लगातार हमले हुए.
अमेरिकन एनजीओ, फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज के मुताबिक, 5 अगस्त के बाद से हिंदू समुदाय पर हिंसा के दो सौ से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके, जबकि ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आए. चिन्मय कृष्ण दास की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी ने अशांति को और भड़का दिया है. इसके बाद से ढाका समेत कई बड़े शहरों में प्रोटेस्ट हो रहे हैं.
अल्पसंख्यकों पर हमलों के पीछे कथित तौर पर जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश के लोग हैं. अगस्त में तख्तापलट के बाद से दो घटनाओं में जेल से लगभग सात सौ कैदी फरार हो गए, इनमें से काफी सारे कैदी जमात-उल-मुजाहिदीन के सपोर्टर थे. इस दौरान ही हिंदुओं पर हमले बढ़ते चले गए.

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