कॉन्गो सिविल वॉर में 40 विद्रोहियों को खुकरी से मार गिराया, ऐसी है इस 'परमवीर' की कहानी
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Param Vir Chakra Recipient Gurbachan Singh Salaria: कॉन्गो देश में हिंसक विद्रोहियों के बीच छोटी सैन्य टुकड़ी लेकर घुसे. खुकरी के हमले से 40 विद्रोहियों को मार डाला. गले में गोली लगने से शहादत मिली पर संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना को फतह दिलाई. ऐसे थे परमवीर गुरबचन सिंह सलारिया.
जून 1960 में कॉन्गो गणराज्य (Republic of Congo) बेल्जियम के शासन से आजाद हुआ. लेकिन जुलाई के महीने में कॉन्गोलीज सेना में विद्रोह हो गया. यह गोरों और कालों के बीच हिंसक होने लगा. बेल्जियम ने गोरे लोगों को बचाने के लिए फौज भेजी. इसके अलावा दो इलाके विद्रोही फौज के कब्जे में थे. पहला काटंगा (Katanga) और दूसरा साइथ कसाई (South Kasai). बेल्जियम ने इस विद्रोह को दबा दिया था. लेकिन कॉन्गो की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र से 14 जुलाई 1960 को मदद मांगी.
संयुक्तर राष्ट्र ने शांति मिशन की सेनाएं भेज दीं. इसमें कई देशों की सेनाएं शामिल थीं. मार्च से लेकर जून 1961 में ब्रिगेडियर केएएस राजा के नेतृत्व में 99वें इन्फैन्ट्री ब्रिगेड के 3000 जवानों के साथ कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया (Captain Gurbachan Singh Salaria) भी कॉन्गो पहुंच गए. संयुक्त राष्ट्र ने कई बार प्रयास किया कि कॉन्गो की सरकार और काटंगा के विद्रोहियों के बीच कई बार बात कराने का प्रयास किया. समझौते का प्रयास किया. लेकिन सब बेकार साबित हुआ. फिर संयुक्त राष्ट्र शांति सेना को बल प्रयोग करने का आदेश दे दिया गया.
विद्रोहियों ने बना रखे थे रोड ब्लॉक्स
काटंगा विद्रोहियों ने पूरे शहर में रोड ब्लॉक्स बना रखे थे. शांति सेना के साथ गए भारतीय फौजी 1 गोरखा राइफल्स के मेजर अजीत सिंह को पकड़ लिया था. बाद में उन्हें मार डाला. इसके बाद यूएन से सख्ती के साथ विद्रोहियों से निपटने के निर्देश दे डाले. 4 दिसंबर 1961 की बात है. एलिसाबेथविले के शहर और उसके नजदीकी एयरपोर्ट के बीच काटंगा विद्रोहियों ने कई सारे रोड ब्लॉक्स खड़े कर दिए थे. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की सेना ने ऑपरेशन उनोकट (Operation Unokat) शुरु किया.
एयरपोर्ट आने-जाने का रास्ता खोलना था
5 दिसंबर 1961 को 1 गोरखा राइफल्स की तीसरी बटालियन को रोड ब्लॉक्स हटाने का काम सौंपा गया. क्योंकि एलिसाबेथविले एयरपोर्ट से आना-जाना नहीं हो पा रहा था. इन रोड ब्लॉक्स के आसपास 150 काटंगा विद्रोहियों ने घात लगा रखी थी. वहां पर दो बख्तरबंद वाहन थे. पहले प्लान था कि चार्ली कंपनी के मेजर गोविंद शर्मा हमला करेंगे. अल्फा कंपनी के एक प्लाटून के साथ कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया थे. वो एयरपोर्ट की सड़क के पास थे. मकसद था विद्रोही हमला करें तो उन्हें खत्म करना और उन्हें भागने भी नहीं देना.
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