
ऑफिस के बाद बॉस ने डिस्टर्ब किया तो...! जानिए क्यों चर्चा में है ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’
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भारत में इस वक्त ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ को लेकर चर्चा तेज है. इसका मतलब यह है कि वर्किंग क्लास को कानूनी हक मिल जाएगा कि ऑफिस टाइम के बाद कर्मचारी से काम की उम्मीद नहीं की जा सकती. लेकिन फिलहाल यह सिर्फ चर्चा तक सीमित है, इसे कानूनी जामा पहनाना आसान नहीं होगा. ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि दुनिया के कौन-से देशों में यह कानून पहले से लागू है, जहां कर्मचारियों का निजी समय सच में सुरक्षित माना जाता है.
भारत में वर्किंग आवर खत्म होने के बाद भी काम पीछा नहीं छोड़ता. एक तरफ देश में 70 घंटे काम करने की बहस छिड़ी हुई है, तो दूसरी तरफ इंसानों की प्रोडक्टिविटी की तुलना अब AI से की जा रही है. वहीं, AI के चलते नौकरियां छिनने की खबरें भी रोज-ब-रोज सामने आ रही हैं. ऐसे माहौल में भारत के वर्किंग क्लास के लिए एक नया बिल पेश किया गया है, जिसे गर्म हवाओं के बीच ठंडी हवा का एक झोंका माना जा रहा है.हालांकि यह झोंका फिलहाल सिर्फ दिलासा देने वाला ही लगता है.
इस बिल का नाम है ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025’. इसे संसद में एनसीपी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने पेश किया है. इस बिल में एम्प्लॉई वेलफेयर अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव रखा गया है.
सबसे अहम बात यह है कि इस बिल में हर कर्मचारी को यह अधिकार देने की बात कही गई है कि वह ऑफिस टाइम के बाहर, छुट्टियों में या अपने निजी समय में काम से जुड़े कॉल, मैसेज या ईमेल का जवाब देने से इनकार कर सकता है.यानी अगर ऑफिस टाइम खत्म हो गया है, तो फोन की रिंगटोन आपकी निजी ज़िंदगी में खलल न डाले और ऑफिस कॉल आपके प्राइवेट टाइम में दखल न दे सके.
हालांकि, यहां एक बात समझना बेहद जरूरी है कि यह एक प्राइवेट मेंबर बिल है. नाम से ही साफ है कि ऐसा बिल सरकार की ओर से नहीं, बल्कि किसी सांसद द्वारा व्यक्तिगत तौर पर पेश किया जाता है. लोकसभा और राज्यसभा के किसी भी सदस्य को ऐसे बिल पेश करने का अधिकार होता है, जिन्हें वे जरूरी मानते हैं.
लेकिन इसका असर क्या होता है? आमतौर पर ऐसे बिल संसद में पेश होने के बाद चर्चा के लिए आते हैं, सरकार जवाब देती है और फिर अधिकतर मामलों में इन्हें वापस ले लिया जाता है. यानी कुल मिलाकर ऐसे बिल नीति बदलने से ज्यादा एक मजबूत संदेश देने के लिए लाए जाते हैं.
इसके बावजूद ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ बिल पर सोशल मीडिया से लेकर वर्किंग प्रोफेशनल्स के बीच चर्चा तेज हो गई है. लोग इसे भारत के वर्क कल्चर में बदलाव की एक संभावित शुरुआत मान रहे हैं.

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