
उपचुनाव में हार के साइड इफेक्ट... सपा हताश-सहयोगी बेचैन, अखिलेश की 'सुस्ती' पर उठा रहे सवाल
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रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में मिली हार से सपा हताश है तो सहयोगी दल बेचैन हैं. सपा के कोर वोटबैंक में बीजेपी सेंधमारी करने में कामयाब रही है, जिसके चलते अखिलेश यादव के सहयोगी दलों को भविष्य की चिंता सताने लगी है. ऐसे में ओम प्रकाश राजभर से लेकर संजय चौहान तक अखिलेश यादव पर सवाल खड़े करने लगे हैं?
उत्तर प्रदेश के रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में मिली हार ने सपा के भविष्य को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. एक तरफ उपचुनाव में सपा के कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम में सेंध लगी तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव की सुस्ती से सहयोगी दल चिंतित और बेचैन नजर आ रहे हैं. उपचुनाव का साइड इफेक्ट यह है कि सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से लेकर जनवादी पार्टी के प्रमुख डॉ संजय चौहान तक अखिलेश यादव को एसी कमरे से बाहर निकलकर जमीन पर उतरने की नसीहत दे रहे हैं.
वहीं, भतीजे अखिलेश यादव से शिवपाल यादव पहले से नाराज हैं और अलग अपनी सियासी राह तलाश रहे हैं. सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य अलग हो चुके हैं. इस तरह एक तरफ सहयोगी दल अलग हो रहे हैं तो कुछ सवाल खड़े कर रहे हैं. ऐसे में सपा के लिए 2024 चुनाव की सियासी राह लगातार पथरीली होती जा रही है.
अखिलेश यादव के नेतृत्व पर सवाल
आजमगढ़ और रामपुर सीटें सपा के लिए सिर्फ सामाजिक समीकरण के लिहाज से काफी मजबूत नहीं मानी जाती, बल्कि पार्टी की जीत के परंपरागत फॉर्मूले एमवाई (मुस्लिम-यादव) के भी प्रतीक रहे हैं. ऐसे में दोनों सीटों पर हार ने सपा के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं. जनवादी पार्टी सोशलिस्ट के अध्यक्ष डॉ संजय चौहान अभी भी सपा के साथ हैं लेकिन अखिलेश यादव के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
ऐसे तो चुनाव नहीं जीता जा सकता-राजभर
सुभासपा के अध्यक्ष ओपी राजभर ने भी सवाल खड़े किए और कहा कि यह तो होना ही था. 2022 के विधानसभा चुनाव की हार से अखिलेश यादव ने कोई सीख नहीं ली. चुनाव का बिगुल बजेगा पर्चा भरा जाएगा, तब आप चुनाव मैदान में जाओगे तो कैसे चुनाव जीतोगे. एक आदमी दो महीने से मेहनत कर रहा है, एक आदमी एक दिन मेहनत कर रहा है, ऐसे तो चुनाव नहीं जीता जा सकता है.

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