
अपनी छवि बदलने का मेगा प्लान, ग्लोबल इफेक्ट... मोदी पर वार के लिए अमेरिका-ब्रिटेन ही क्यों गए राहुल गांधी?
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चुनावी मौसम में राहुल गांधी ने ब्रिटेन और अमेरिका का दौरा करने का क्यों फैसला किया? क्या इसके पीछे कांग्रेस का कोई गेम प्लान है या फिर राहुल गांधी के मन में 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ और ही चल रहा है?
'मैं एक आम आदमी हूं. मुझे यह पसंद है. मैं तो अब सांसद भी नहीं हूं...' अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को एयरपोर्ट पर इमीग्रेशन क्लीयरेंस के इंतजार में जब राहुल गांधी को करीब दो घंटे इंतजार करना पड़ा तो उनके चेहरे पर कोई शिकन या गुस्सा नहीं था. वह आम यात्री की तरह एयरपोर्ट से बाहर निकलने की अपनी बारी का इंतजार करते रहे. एयरपोर्ट पर बाकी यात्रियों को राहुल के बारे में पता चला तो वे उनके पास आए. इस दौरान राहुल ने खुशी-खुशी उनके साथ सेल्फी भी खिंचवाई.
राहुल की 'कॉमन मैन' की यह छवि कई मौकों पर दिखती रही है. भारत जोड़ो यात्रा हो या फिर कर्नाटक का सियासी संग्राम, वह लीक से हटकर बाकी राजनेताओं की तरह दिखे हैं. ब्रिटेन और अमेरिका में कभी-कभी वो इसी अवतार में दिखे. अमेरिका में एयरपोर्ट का वो वाकया हो या फिर ट्रक ड्राइवर के साथ बातचीत, राहुल गांधी की अलग छवि दिखी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दोनों मुल्कों का दौरा क्या राहुल गांधी की रणनीति का कोई हिस्सा था? यदि हां तो फिर तो इन दौरों से उन्हें क्या हासिल हुआ? आगामी लोकसभा चुनाव में क्या इसका कोई असर होगा? विपक्ष में अभी भी पीएम पद का उम्मीदवार कौन हो, इस पर मंथन जारी है. यदि बदलते सियासी मौसम में कोई एक राय नहीं बन पाई, तो फिर राहुल की बदली-बदली छवि से क्या उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी?
चुनाव से पहले अमेरिका क्यों गए राहुल? यह कोई संयोग नहीं है कि राहुल गांधी अमेरिका से अपना दौरा खत्म कर उस समय भारत लौट रहे हैं, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के राजकीय दौरे पर जाने वाले हैं. प्रवासी भारतीयों में पीएम मोदी की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. तो फिर आखिर क्या वजह रही कि राहुल गांधी उस वक्त ब्रिटेन और अमेरिका गए, जब लोकसभा चुनाव में महज एक साल बचे हैं और अगले कुछ महीनों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ समेत कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं.
जब यही सवाल आज तक ने वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई से पूछा तो वो बताते हैं, 'कुछ दिनों पहले इंडिया टुडे-सी वोटर सर्वे दिखाया गया तो उसमें राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी थी. पीएम मोदी के टक्कर देते राहुल को पसंद करने वाले लोगों की तादाद बढ़ गई थी. आज इंटरनेट के दौर में खासकर सोशल मीडिया की अहमियत काफी बढ़ गई है. दुनिया के तमाम राजनेता इसका बखूबी इस्तेमाल करते हैं. खासकर पीएम मोदी ने इसका 2014 लोकसभा चुनाव और विदेश दौरों में खूब अपने पक्ष में भुनाया. अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया दौरे में पीएम मोदी प्रवासी भारतीयों के साथ संवाद करते रहे और इसका असर भारतीय वोटरों खासकर युवाओं पर हुआ. राहुल गांधी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं और देश में मोदी के बाद सबसे लोकप्रिय जननेता हैं. राहुल इन दौरों से अपनी छवि मजबूत करने के साथ मोदी को टक्कर देने वाले राजनेता के रूप में खुद को पेश करना चाहते हैं.'
विदेश में मोदी सरकार की आलोचना कितना सही? हालांकि राहुल गांधी पर इस बात को लेकर निशाना साधा गया कि वे विदेश में जाकर भारत सरकार की आलोचना करते हैं. उनके आलोचकों का कहना था कि इससे देश की छवि खराब होती है. खासकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर समेत मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने उन्हें आड़े हाथों लिया. इस पर राशिद किदवई कहते हैं- 'फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सिर्फ भारत ही नहीं, बाकी देशों में लोग यूज करते हैं. ऐसे में आपकी किसी भी जगह कही गई बात सिर्फ एक देश तक सीमित नहीं रह सकती. किसी नेता की स्पीच या बयान उसी समय देखी या पढ़ी जा सकती है. राहुल गांधी इन तरीकों से खुद अपने आपको ऐसे पेश कर रहे हैं जो आम लोगों से जुड़ा हुआ इंसान है और उन्होंने इसे बखूबी पेश किया है. विदेश में वो जरूर होते हैं, लेकिन उनका टारगेट भारतीय मतदाता होते हैं.
ताकतवर मुल्कों का ही दौरा क्यों? सवाल यह भी उठता है कि क्या राहुल गांधी इन विदेशी दौरे से 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी को जोड़ रहे हैं. राहुल खुद को ऐसे नेता के रूप में पेश करने की कोशिश में हैं जो भारत ही नहीं, मुल्क के बाहर भी मोदी के मुकाबले दिखता हो. प्रवासी भारतीयों से स्पष्ट संवाद और वहां की यूनिवर्सिटी में स्पीच, युवाओं के बीच वह खुद को दमदार दिखाना चाहते हैं. वो दिखाना चाहते हैं कि भारत को लेकर उनके पास विजन है. शायद इसी वजह से वह ब्रिटेन और अमेरिका जैसे ताकतवर देश गए और खुलकर बात की. सवाल यह भी उठता है कि ये अमेरिकी भारतीय जब वोट डालने भारत नहीं आ पाते तो भारतीय राजनेताओं से इतनी मोहब्ब्त क्यों? इसकी पीछे वजह है कि भले ही ये प्रवासी दुनिया के कोने-कोने में अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ रखे हैं, लेकिन सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से वे हमेशा अपने वतन से जुड़े रहते हैं. इंडियन इकोनॉमी में इन लोगों का बड़ा निवेश है. अमेरिका और बाकी देशों में प्रवासी भारतीयों की लॉबी भारत के साथ रिश्ते पर गहरी छाप छोड़ते हैं. साल 1998 में भारत का परमाणु परीक्षण, फिर कड़े आर्थिक प्रतिबंध और कुछ वर्षों में अमेरिका से दोस्ताना रिश्ते पूरी कहानी बयां करते हैं.

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