
Fighter box office: कमजोर पड़ी 'फाइटर', क्या फ्लॉप हो रहा है पाकिस्तान से बदले का आइडिया?
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2004 से 2014 तक भारत-पाकिस्तान फॉर्मूला जहां करीब 25 छोटी-बड़ी चर्चित फिल्मों में था, वहीं सिर्फ लॉकडाउन के बाद से इसे करीब 15 से ज्यादा फिल्मों और वेब सीरीज में फिट किया जा चुका है. इस कनफ्लिक्ट पर डायरेक्ट बात करने वाली फिल्में वैसे भी कम ही चली हैं. फिल्म की कहानी का मेन मुद्दा कुछ और हो, और ये कनफ्लिक्ट बीच में आए तो ऑडियंस पचा ले जाती है.
ऋतिक रोशन की फिल्म 'फाइटर' इन दिनों थिएटर्स में है और जनता की तारीफों के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर पैर जमाए रख पाने में जूझ रही है. डायरेक्टर सिद्धार्थ आनंद की 'फाइटर', फिल्मों की उस लंबी लिस्ट में आती है जिनमें भारत को पाकिस्तानी में घुसकर ऑपरेशन करते दिखाया गया है. ऋतिक और दीपिका पादुकोण की धांसू कास्टिंग और डायरेक्शन में सिद्धार्थ आनंद जैसा जबरदस्त डायरेक्टर होने के बावजूद 'फाइटर' जिस तरह धीमी गति से थिएटर्स में चल रही है, उससे सब हैरान हैं.
'फाइटर' के ट्रेलर को जिस तरह का रिस्पॉन्स मिला था, उससे लग रहा था कि पिछले साल आई 'पठान' की तरह, ये फिल्म भी नए साल की शुरुआत में ही बॉलीवुड के कई रिकॉर्ड पलट देगी. मगर 7 दिन में किसी तरह 142 करोड़ रुपये के करीब ही पहुंच सकी इस फिल्म का हाल देखकर एक ही सवाल उठता है कि 'फाइटर' जनता को लुभा क्यों नहीं पाई? शायद इसका जवाब फिल्म की कहानी में छुपा है.
कहा जाता है कि सिनेमा या कोई भी आर्ट फॉर्म अपने समय का आईना होता है. और कश्मीर की टेंशन में पाकिस्तान का हाथ होना, कारगिल युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर जीत, दोनों देशों के बीच बनते बिगड़ते कूटनीतिक रिश्ते, आतंकी हमलों और आतंकी संगठनों को सरहद पार से मिल रही शय ने जनता के सेंटिमेंट पर बहुत असर डाला है. यही असर सिनेमा में यूं उतरा कि पाकिस्तान से बदला ले लेना कहानियों में देशभक्ति का थर्मामीटर बन गया. लेकिन पिछले एक दशक में ये थर्मामीटर बहुत ज्यादा यूज हुआ है. इतना कि शायद अब जनता को ऐसी फिल्मों का बुखार ही नहीं रहा!
पहले भी नहीं चलीं सीधा इंडिया-पाकिस्तान करने वाली फिल्में 2004 से 2014 तक करीब 25 हिंदी फिल्में ऐसी रिलीज हुईं जिनमें भारत-पाकिस्तान-आतंकवाद-रॉ-मिशन वाला फॉर्मूला कहानी में नजर आया. मगर इनमें से जो फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सलामत बचीं, उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है- वीर जारा, फना, अ वेडनसडे, एक था टाइगर, हॉलिडे और हैदर. इनमें से किसी भी कहानी ने डायरेक्ट इंडिया-पाकिस्तान कनफ्लिक्ट को एड्रेस नहीं किया था.
जहां 'हैदर' ने इस कनफ्लिक्ट का लोगों पर असर दिखाने की कोशिश की थी, वहीं वीर जारा-फना-एक था टाइगर लव स्टोरीज थीं, जिनमें दोनों देशों के डिफरेंस तो थे मगर 'बदले' वाली बात नहीं थी. 'हॉलिडे' और 'अ वेडनसडे' में कनफ्लिक्ट का जिक्र तो आया, मगर इनके चलने ये आतंकवादियों को जवाब देने के बारे में ज्यादा थीं. इन दोनों फिल्मों का कॉन्सेप्ट बहुत अलग था. 'हॉलिडे' में पहली बार 'स्लीपर सेल' का जिक्र आया, तो 'अ वेडनसडे' में आतंकवाद का जवाब दे रहे एक अकेले आम आदमी की कहानी थी.
मगर एक दशक में इन गिनी-चुनी कामयाब फिल्मों के बीच इंडस्ट्री में फ्लॉप फिल्मों का भी ढेर लग गया. खासकर वो जो डायरेक्ट इंडिया-पाकिस्तान वाले फंडे पर थीं. अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, दीवार, सरहद पार, कुर्बान, 1971 और कॉन्ट्रैक्ट जैसी तमाम फिल्में फ्लॉप रहीं.

आशका गोराडिया ने 2002 में एक यंग टेलीविजन एक्टर के रूप में एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में कदम रखा था. 16 साल बाद उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया. इसका कारण थकान नहीं, बल्कि एक विजन था. कभी भारतीय टेलीविजन के सबसे यादगार किरदार निभाने वाली आशका आज 1,800 करोड़ रुपये की वैल्यूएशन वाली कंपनी की कमान संभाल रही हैं.












