
Anand Bakshi Death Anniversary: मां की तस्वीर लेकर पाकिस्तान से आए थे आनंद बक्शी, पढ़ें अनसुने किस्से
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आज आनंद बक्शी की याद का दिन है. उन्हें लम्बे वक्त से दिल की बीमारियां थीं और 2001 में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक भी पड़ा था. वो दो बार कोमा में गए और दूसरी बार कभी वापस नहीं आये. 30 मार्च 2002 को उनका निधन हो गया.
2 अक्टूबर 1947. ऊबड़-खाबड़ रैडक्लिफ रेखा खींची जा चुकी थी और इसके दोनों ओर से लोगों का आना-जाना चालू था. दोनों ओर हत्याओं, लूट-पाट और हर संभव कुकृत्य का आलम था. रावलपिंडी के एक मोहल्ले में बक्शी परिवार रहता था. परिवार के मुखिया, जिन्हें हर कोई बाऊजी कहता था, पिंडी और लाहौर जेल के सुपरिंटेंडेंट थे. उन्हें खबर मिली कि उस रोज शाम के बाद किसी भी वक्त मोहल्ले पर हमला होने वाला था. वहां मौजूद हर किसी को जान-माल का खतरा था. पूरे परिवार में हर किसी को बताया गया कि अगले कुछ ही घंटों में उन्हें वो जगह छोड़नी होगी. सभी को हिंदुस्तान जाना था. बाऊजी ने अपनी रसूख का इस्तेमाल करते हुए जितना हो सका, इंतजाम करवाया. उन्होंने घर से हवाई अड्डे तक पहुंचने के लिये सेना का एक ट्रक मंगवाया. उसके बाद पूरे परिवार को डकोटा एयरलाइंस के जहाज से दिल्ली उतरना था.
बाऊजी और बीजी ने सभी को समझाया कि उनके पास वक्त कम था. हर किसी को हिदायत दी गयी कि बहुत ज्यादा सामान नहीं ले जाया जा सकता था, लिहाजा कीमती चीजों को ही अपने साथ रखें और उसे लेकर नये देश चलें. वो देश, जो कुछ वक्त पहले तक उनका ही था, लेकिन अब उन्हें वहां शरण लेनी थी. हिंदुस्तान. परिवार में सबसे छोटा शख्स था 16 बरस से कुछ ऊपर का लड़का प्रकाश वैद बक्शी. उसकी मां उसे नंद कहती थीं तो उसके पिता उसे अजीज नाम से पुकारते थे. नंद जब छह साल का था तो गर्भावस्था में हुई कुछ समस्याओं के चलते उसकी मां मितरा की मौत हो गयी थी. नंद अपना घर, अपना बचपन छोड़कर जाने की तैयारी में लगा हुआ था. 'बाऊजी', 'बीजी' के अलावा उसके 'पापाजी', उसकी नयी मां, सौतेले भाई-बहन भी साथ आ रहे थे. पूरा परिवार अपना सब कुछ छोड़ने के दुख में डूबा हुआ था. साथ ही, जान का खतरा भी था. हमला किसी भी वक्त हो सकता था. हर कोई ऐसी हड़बड़ी में था, जिसकी इनमें से किसी ने भी कोई कल्पना नहीं की थी.
हर कोई अपने साथ जो सामान हो सका, लेकर सेना के ट्रक में चढ़कर हवाई अड्डे पहुंचा. वहां से जहाज में बैठकर दिल्ली उतरा. बक्शी परिवार ने वो दिन दिल्ली में गुजारा. यहां बाऊजी की बहन वंती का परिवार रहता था. वो सभी देव नगर में वंती के बेटे के घर रुके. उनका अगला पड़ाव था पूना. यहां के शरणार्थी कैम्प में उन्हें बतौर शरणार्थी अपना रजिस्ट्रेशन करवाना था.
आसमान की ऊंचाईयों को छूने से लेकर जमी पर गिरने तक, ऐसे साथ रही नदीम-श्रवण की जोड़ी
मां की फोटो लेकर आए दिल्ली देव नगर पहुंचकर सभी ने राहत की सांस ली और थोड़ा-बहुत आराम किया. आराम के इसी मौके में घर के बड़ों ने ये जानने की कोशिश की कि आखिर कौन क्या सामान लेकर आया था. क्यूंकि यहां आकर उन्हें नये सिरे से जिन्दगी की शुरुआत करनी थी. उनके पास सिर्फ और सिर्फ वही चीजें थीं जो वो पिंडी से ला सके थे. आने वाले कई दिन उन्हीं चीजों के सहारे कटने वाले थे. हर किसी ने घर से लायी चीजें सामने रखनी शुरू कीं. बाऊजी ने नंद से पूछा कि वो क्या लाया था. उसने अपनी कमीज से कुछ तस्वीरें निकालीं. ये उसके परिवार की तस्वीरें थीं. मालूम पड़ा कि पिंडी से आते वक्त वो बस यही लेकर आया था.
पापाजी का गुस्सा आसमान को छू गया. उन्होंने नंद को जोर से डांटा और कहा, "इनसे हम कैसे रहेंगे यहां?"

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