
80 साल के अमिताभ: सफर के वो 8 मोड़ जहां से गुजर कर जनता का बच्चन, भारत का 'महानायक' बना
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11 अक्टूबर 1942 में जन्मे अमिताभ बच्चन 80 साल के हो रहे हैं. इसमें से 50 साल से ज्यादा वक्त वो फिल्मों में गुजार चुके हैं. लेकिन सिर्फ लंबा समय एक्टिंग में बिता देने से वो महानायक नहीं बने. और न ही सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर हिट फिल्मों की लम्बी लिस्ट होने से. उन्हें महानायक का कद दिलाने वाली चीज कुछ और है.
अमिताभ बच्चन का नाम लेने की भी जरूरत नहीं है. इंडियन सिनेमा का 'महानायक' कह दीजिए, बस… सब समझ जाएंगे कि बात किसकी हो रही है. फिल्म इंडस्ट्री में स्टार होते हैं, सुपरस्टार होते हैं और मेगास्टार भी. लेकिन महानायक एक ही हुआ है- अमिताभ बच्चन. और अब मामला ऐसा है कि जब कोई स्टार एकदम स्क्रीनफाड़ परफॉरमेंस देता है तो लोग उसे 'बच्चन टाइप' काम कहते हैं.
इस समय जो सिनेमा दर्शक 'यंग' की कैटेगरी में आते हैं, उनमें से अधिकतर ने बच्चन साहब की 'दीवार' 'डॉन' 'मुकद्दर का सिकंदर' जैसी सिग्नेचर फिल्में शायद थिएटर में न देखी हों. और न ही उनके फैनडम को उस तरह जिया हो, जैसे अपने बच्चन के लिए थिएटर के बाहर टिकट की लाइन में पुलिस की लाठी खाते किसी आदमी ने जिया होगा.
ये दीवानापन तो फिर भी कई और स्टार्स के लिए भी कभी न कभी जनता में रहा. तो फिर ऐसा क्या है जो बच्चन साहब को महानायक बनाता है? इसका जवाब ट्रेडमार्क अमिताभ बच्चन स्टाइल को स्क्रीन पर फिर से ताजा-ताजा जीवित करने वाली फिल्म KGF में है- 'फर्क इससे पड़ता है कि कौन पहले नीचे गिरा'! और 50 साल से भी ज्यादा लंबे करियर में बच्चन साहब कभी नहीं गिरे. जब-जब लगा कि इस सितारे की रोशनी कुछ मंद पड़ रही है, वो ऐसा चमका कि उसके बिखरने का अनुमान गढ़ने वालों की आंखें चौंधिया गईं.
इस बात पर लंबी बहस हो सकती है कि अमिताभ बच्चन के करियर ग्राफ में सबसे डिफाइनिंग मोमेंट कौन से हैं. फिर भी हमारे हिसाब से उनके करियर में 8 ऐसे मोमेंट हैं जिनके कारण उन्हें वो उपमा मिली, जिससे दर्शक उन्हें पहचानते हैं. अमिताभ बच्चन के ऑनस्क्रीन सफर के वो मोड़, जिन्होंने उन्हें महानायक बना दिया:
1. आनंद नवंबर 1969 में ख्वाजा अहमद अब्बास की 'सात हिंदुस्तानी' से लोगों ने अमिताभ बच्चन को पहली बार स्क्रीन पर देखा. हालांकि, इससे पहले मई में लेजेंड फिल्ममेकर मृणाल सेन की 'भुवन शोम' में उनकी आवाज बतौर सूत्रधार लोगों को सुनाई दी थी, लेकिन पर्दे पर उनका पहला दीदार 'सात हिंदुस्तानी' से ही हुआ. फिल्म आई और अमिताभ की एक्टिंग को तारीफ भी मिली. लेकिन एक एक्टर का जो 'ब्रेकआउट' मोमेंट यानी स्क्रीन पर खिलने वाला मोमेंट है वो अभी बाकी था.
और वो अमिताभ को मिला ऋषिकेश मुखर्जी की 'आनंद' में, डॉक्टर भास्कर मुखर्जी के किरदार से. फिल्म में उस दौर के सुपरस्टार राजेश खन्ना लीड एक्टर थे और आनंद उनकी सुपरहिट लहर में आई फिल्म थी. मगर नए लड़के अमिताभ के काम को देखकर जनता बहुत इम्प्रेस हुई. बड़ा मशहूर किस्सा है कि रिलीज के दिन जब अमिताभ कार में पेट्रोल भरवाने पम्प पर पहुंचे तो कोई उन्हें नहीं पहचानता था. लेकिन फिल्म आने के कुछ दिन बाद जब वो दोबारा वहीं पहुंचे तो लोग उन्हें पहचानने लगे थे.













