
'हिंदू-मुसलमान के बीच लड़ाई चाहते हैं लोग', गदर डायरेक्टर बोले- फिल्में देती हैं शांति का संदेश
AajTak
पहलगाम हमले पर बात करते हुए अनिल कहते हैं कि क्या मतलब है नाम पूछकर मारने का? और मारने की जरूरत ही क्यों पड़ी? क्या आप चाहते हो कि हिंदू-मुसलमान के बीच लड़ाई हो? ये सब उनकी राजनीतिक चाल है, अपने मकसद पूरे करने के लिए. अगर हिंदुस्तान और पाकिस्तान के आम लोग एक बार सोचें कि हमें इंसानियत के रास्ते पर चलना है, तो रिश्ते सुधर सकते हैं.
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने बॉलीवुड को भी शॉक दिया है. डायरेक्टर अनिल शर्मा का कहना है कि हर किसी की सहन शक्ति की एक सीमा होती है, भारत ने कभी हमले की पहल नहीं की है. बल्कि हमारे यहां कि तो फिल्में भी शांति का संदेश देती हैं. बॉलीवुड में ऐसी कई फिल्में बनी हैं जो अलग-अलग तरह से ये बताती हैं कि दोनों देशों के बीच भी तालमेल हो सकता है.
इसका उदाहरण देते हुए अनिल शर्मा ने अपनी डायरेक्ट की फिल्म गदर के साथ यश चोपड़ा की वीर जारा, जेपी दत्ता की बॉर्डर और उरी तक की बात की.
फिल्में देती हैं शांति की सीख
अनिल शर्मा ने कहा- हर किसी ने अपने-अपने तरीके से इंडिया और पाकिस्तान के झगड़े को दिखाया है. यशजी ने अपना नजरिया दिखाया, 'बॉर्डर' फिल्म ने इसे एक अलग अंदाज में पेश किया. जब हमने 'गदर' बनाई, तो हमारा मकसद ये बताना था कि 'मोहब्बत ही सब कुछ होती है. पार्टिशन के वक्त 10 लाख से भी ज्यादा लोगों की जान गई थी, जो दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक थी. 'हमने खुद से सवाल पूछा कि जब दोनों तरफ के लोग एक जैसे थे, तो दो देश बनाने की जरूरत ही क्या थी? उस वक्त भारत में रह रहे ज्यादातर मुसलमानों की जड़ें भी कहीं न कहीं हिंदुओं से जुड़ी थीं. भाईचारे की भावना थी. उस समय ये भी कहा गया था कि पाकिस्तान में रह रहे हिंदू वहीं रहेंगे और भारत में रह रहे मुसलमान वहीं रहेंगे. फिर ऐसा क्या हुआ कि, जैसा हमने 'गदर' में भी दिखाया, हिंदुओं को पाकिस्तान छोड़ने के फरमान आने लगे? ये सब सत्ता और धर्म के खेल का नतीजा था, जो इंसानियत को मारता है. हमने 'गदर' में यही दिखाने की कोशिश की, कि इंसानियत का रास्ता सबसे बड़ा होता है.'
अनिल शर्मा ने TOI से बातचीत में आगे कहा कि 'उरी' जैसी फिल्मों में भावनाएं 'वीर-जारा' जैसी फिल्मों से बिल्कुल अलग हैं. अगर कोई हमारे घर में घुस कर हमें मारेगा, जैसे कुछ दिन पहले पहलगाम में हुआ, तो हम भी जाकर उन्हें मारेंगे. जनता के अंदर गुस्सा है, 'उरी' ने यही दिखाया था. मैंने भी काफी पहले अपनी फिल्म 'तहलका' में यही दिखाया था.
'अगर रिश्ते सुधारने हैं तो इंसानियत का सोचो'

रूसी बैले डांसर क्सेनिया रयाबिनकिना कैसे राज कपूर की क्लासिक फिल्म मेरा नाम जोकर में मरीना बनकर भारत पहुंचीं, इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है. मॉस्को से लेकर बॉलीवुड तक का उनका सफर किसी फिल्मी किस्से से कम नहीं. जानिए कैसे उनकी एक लाइव परफॉर्मेंस ने राज कपूर को प्रभावित किया, कैसे उन्हें भारत आने की इजाजत मिली और आज वो कहां हैं और क्या कर रही हैं.

शहनाज गिल ने बताया कि उन्हें बॉलीवुड में अच्छे रोल नहीं मिल रहे थे और उन्हें फिल्मों में सिर्फ प्रॉप की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था. इसी वजह से उन्होंने अपनी पहली फिल्म इक कुड़ी खुद प्रोड्यूस की. शहनाज ने कहा कि वो कुछ नया और दमदार काम करना चाहती थीं और पंजाबी इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थीं.

ओटीटी के सुनहरे पोस्टर भले ही ‘नई कहानियों’ का वादा करते हों, पर पर्दे के पीछे तस्वीर अब भी बहुत हद तक पुरानी ही है. प्लेटफ़ॉर्म बदल गए हैं, स्क्रीन मोबाइल हो गई है, लेकिन कहानी की कमान अब भी ज़्यादातर हीरो के हाथ में ही दिखती है. हीरोइन आज भी ज़्यादातर सपोर्टिंग रोल में नज़र आती है, चाहे उसका चेहरा थंबनेल पर हो या नहीं. डेटा भी कुछ ऐसी ही कहानी कहता है.










