हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने का मामला: SC ने जवाब बदलने पर केंद्र की मंशा पर उठाए सवाल
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सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मामले में सुनवाई हुई. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की गई है कि जिन राज्यों में हिंदुओं की जनसंख्या कम है, वहां अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए तीन महीने का समय दिया है.
भारत के जिन राज्यों में हिंदुओं की जनसंख्या कम है, वहां अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान जस्टिस संजय किशन कौल ने सरकार के जवाब में बदलाव पर कहा कि लगता है कि सरकार तय करने में सक्षम नहीं है कि वह क्या करना चाहती है?
दरअसल, 10 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मामले में याचिका पर जवाब दाखिल करते हुए केंद्र ने कहा था कि राज्य इस पर फैसला ले सकते हैं. लेकिन सोमवार को केंद्र ने दोबारा हलफनामा पेश कर कहा कि इस मामले में सभी पक्षों के साथ विस्तृत चर्चा की जरूरत है.
कोर्ट ने कहा- केंद्र का जवाब अनिश्चितता पैदा करता है जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा, केंद्र को यह स्टैंड पहले ही दिया जाना चाहिए था. केंद्र का इस तरह से जवाब बदलना एक अनिश्चितता पैदा करता है. आप तय कीजिए कि आप क्या करना चाहते हैं?
इस मामले में केंद्र की ओर से पास ओवर मांगे जाने पर जस्टिस कौल ने टिप्पणी करते हुए मामले को सुनवाई end of the board यानी सभी मामलों की सुनवाई के बाद करना तय किया. सु्प्रीम कोर्ट ने केंद्र को तीन महीने का समय दिया है.
10 राज्यों में हिंदुओं की जनसंख्या कम सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका दाखिल की है. इस याचिका में उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है. याचिकाकर्ता ने देश के विभिन्न राज्यों में अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशा-निर्देश तय करने के निर्देश देने की मांग की है. उनकी यह दलील है कि देश के कम से कम 10 राज्यों में हिन्दू भी अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है.
याचिका में कहा गया है कि लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में यहूदी, बहाई और हिंदू अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वो वहां अपने शैक्षणिक संस्थान संचालित नहीं कर सकते. संविधान में दिए गए अधिकार और सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के विपरीत ये गलत है.
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