हरा सोना: इस पौधे पर क्यों है पाकिस्तानी किसानों की नज़र
BBC
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के तीन ज़िलों तीराह, औरकज़ई और कुर्रम के ख़ास इलाक़ों में भांग की खेती की जाती है. इससे बनने वाली चरस की तस्करी न सिर्फ़ देश के अंदर बल्कि विदेशों में भी होती है.
पाकिस्तानी के क़बीलाई ज़िले लोअर औरकज़ई के जहांगीर जानाना (30 साल) और उस इलाक़े के दूसरे किसान बारिश के होने और सरकार से भांग की खेती को क़ानूनी मंज़ूरी मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं. किसानों के अनुसार, उन्हें अगले कुछ दिनों में बारिश होने की उम्मीद तो है, पर सरकार के फ़ैसले को लेकर कुछ नहीं पता.
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद जहांगीर और उनके परिवार की आय का मुख्य स्रोत भांग की फ़सल से मिलने वाली चरस की ग़ैर क़ानूनी बिक्री है, जिससे वे पांच से छह लाख रुपए सालाना कमा लेते हैं. हालांकि पिछले कई सालों से इस फ़सल से होने वाली उनकी आय अब आधी रह गई है, क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान से होने वाली तस्करी के कारण दाम में कमी आई है.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के तीन ज़िलों यानी ख़ैबर की वादी तीराह, औरकज़ई और कुर्रम के ख़ास इलाक़ों में भांग की खेती की जाती है. इससे बनने वाली चरस की तस्करी न सिर्फ़ देश के अंदर बल्कि विदेशों में भी होती है.
दूसरे देशों में भांग के अवयवों से भोजन, कपड़े, दवाइयां और निर्माण सामग्रियां बनती हैं, जो भांग से बनने वाली चरस की अपेक्षा बहुत अधिक आय देती हैं.
इस आधार पर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा सरकार ने सन 2021 में ज़िला ख़ैबर की वादी तीराह, औरकज़ई और कुर्रम में भांग की क़ानूनी खेती और इससे चरस व अन्य मादक पदार्थ बनाने के बदले उसके लाभकारी इस्तेमाल के उद्देश्य से सर्वे कराने का निर्णय किया था जिसकी ज़िम्मेदारी पेशावर विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग को दी गयी थी.