सरकारी नौकरी के मामले में नौजवानों का भविष्य कैसे दाँव पर लग गया
BBC
बिहार और दूसरे राज्यों के लाखों ऐसे छात्र हैं, जो सालों से सरकारी नौकरी के भरोसे बैठे हैं. सवाल ये है कि क्या इन छात्रों के सपने कभी पूरे हो पाएंगे? क्या सरकार के पास इतनी नौकरियां हैं कि लाखों छात्रों को नौकरी मिल पाए?
बाइस साल के लखन कुमार सिंह बिहार के सीवान ज़िले के रहने वाले हैं. नौकरी की तैयारी के लिए पिछले चार साल से पटना में हैं. उनके घर की माली हालत ठीक नहीं है. बड़े भाई बीटेक करने के बाद भी बेरोज़गार हैं, वहीं छोटे भाई पढ़ाई कर रहे हैं. ऐसे में घर की उम्मीदें लखन सिंह पर टिकी हैं.
पटना में किराए के एक कमरे में रह रहे लखन के हर महीने का ख़र्च करीब 6 हज़ार है लेकिन दिक़्क़त सिर्फ़ ये नहीं है. असली समस्या है कि लखन सिंह जिस सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं, वो अभी कोसों दूर है.
लखन सिंह, 23 फ़रवरी को होने वाली रेलवे की ग्रुप 'डी' परीक्षा देने वाले हैं. इस परीक्षा के लिए उन्होंने 2019 में फ़ॉर्म भरा था, लेकिन रेलवे भर्ती बोर्ड ने आख़िरी समय पर नियम बदल दिया.
लखन सिंह बताते हैं, ''भर्ती के नोटिफ़िकेशन में सिर्फ़ एक ही परीक्षा सीबीटी 1 (कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट) की बात कही गई थी. अब 24 जनवरी को नोटिफ़िकेशन निकालकर कहा गया कि सीबीटी 1 पास करने के बाद सीबीटी 2 परीक्षा भी देनी होगी. पहले ग्रुप-डी की नौकरी के लिए सिर्फ सीबीटी 1 ही होती थी. सरकार ने जब एक परीक्षा लेने में तीन साल लगा दिए तो सोचिए कि अगली परीक्षा में कितना समय लगेगा? ये छात्रों के साथ धोखा है.''
बिहार के कटिहार ज़िले के रहने वाले तारिक़ अनवर की कहानी इससे थोड़ी अलग है. पटना में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे तारिक़ अनवर ने 2019 में रेलवे भर्ती बोर्ड की ग़ैर तकनीकी लोकप्रिय श्रेणी (RRB-NTPC) की परीक्षा दी थी. परीक्षा फ़ॉर्म भरने के दो साल बाद हुई थी. हालांकि तारिक इस परीक्षा में पास नहीं कर सके.