
संघ के 100 साल: 1965 के युद्ध में जब शास्त्रीजी ने मांगी थी गुरु गोलवलकर से सहायता
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एक दोपहर गुरु गोलवलकर भोजन के बाद आराम कर रहे थे. तभी एक संदेशवाहक आया और उनसे कहा कि वे जल्द से जल्द प्रधानमंत्री कार्यालय संपर्क करे. मामले की गंभीरता समझ गोलवलकर ने पीएमओ फोन लगाया. यहां उनकी बात प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से हुई. पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझे पीएम शास्त्री ने कहा कि आप फौरन दिल्ली पहुंचिए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.
अगस्त 1965 में भारत-पाक युद्ध शुरू होने से करीब ढाई महीने पहले प्रवास खत्म कर नागपुर में तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन पर गुरु गोलवलकर पहुंचे तो एक हृदय विदारक खबर मिली कि भैयाजी दाणी का निधन इंदौर के वर्ग में हो गया है. गुरु गोलवलकर ने किसी को पता नहीं चलने दिया कि उनको व्यक्तिगत तौर पर इस खबर से कितना बड़ा झटका लगा है, उन्होंने अपना बौद्धिक सत्र सामान्य तौर पर ही लिया. बाद में गीता प्रेस के संस्थापक और अपने गुरु भाई हनुमान पोद्दार को एक पत्र में लिखा कि, “समाचार सुनते ही लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई है”.
लम्बा प्रवास और ऐसी खबर, डॉ आबाजी थट्टे को कुछ दिनों के बाद लगा कि गुरु गोलवलकर कमजोर और बीमार लग रहे हैं, उन्होंने बाला साहब देवरस को बताया और फिर तय किया गया कि गुरु गोलवलकर को स्वास्थ्य लाभ के लिए केरल के एक आयुर्वेदिक आश्रम में भेज दिया जाना चाहिए. ये जुलाई का महीना था. पूरे 28 दिन गोलवलकर वहां रहे, आयुर्वेदिक पद्धतियों से उनका इलाज हुआ, वहां भी आसपास के नगरों से स्वयंसेवक उनसे मिलने आते रहे, फिर चेन्नई होते हुए वह अगस्त के पहले सप्ताह में वापस नागपुर लौटे. उसी हफ्ते भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया.
6 सितम्बर का दिन था. गुरु गोलवलकर दोपहर के खाने के बाद राज्य के संघचालक काकाजी लिमए के घर पर आराम कर रहे थे कि उनके पड़ोसी बापूसाहेब पुजारी के नंबर पर 2 से 2.30 बजे के बीच एक संदेश आया कि गुरु गोलवलकर कृपया शीघ्रातिशीघ्र प्रधानमंत्री कार्य़ालय से सम्पर्क करें. उनको एक नंबर भी दिया गया था, जिस पर संपर्क करना था. मामला गंभीर दिखता था, गुरु गोलवलकर बापू साहेब पुजारी के घर पहुंचे और दिए गए नंबर पर फोन किया. वहां प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीजी से बात हुई. शास्त्री जी ने कहा, “आपको तो पता ही है युद्ध चल रहा है, मैं देश के सभी नेताओं से सहयोग चाहता हूं. मैंने सभी दलों के नेताओं को सुबह 10 बजे बैठक में बुलाया है, आप भी रहिए”.
‘लेकिन मैं तो किसी राजनीतिक दल का नेता नहीं’
गुरु गोलवलकर का जवाब था, “धन्यवाद शास्त्रीजी, लेकिन मैं तो किसी राजनीतिक दल का नेता नहीं हूं, एक संस्था का बस कार्यकर्ता हूं”. तब शास्त्रीजी को ध्यान आया, फिर बोले, “देखिए देश अभी मुश्किल दौर से गुजर रहा है और मुझे आपकी सहायता चाहिए”. इस बात पर गुरूजी राजी थे. कहा, ये स्वीकार है, लेकिन मैं इतनी दूर से एकदम सुबह में कैसे पहुंच सकता हूं? शास्त्रीजी सब कुछ पहले ही इंतजाम कर चुके थे. बोले- आप फौरन बम्बई निकलिए, वहां व्यवस्थाएं की जा रही हैं. मैंने निर्देश दे दिए हैं. और वाकई में सब अच्छे से हो भी गया, गुरु गोलवलकर भी ऑल पार्टी मीटिंग में प्रधानमंत्री के साथ उपस्थित रहे. शास्त्री ने इस बैठक में पूरे युद्ध की जानकारी दी कि कैसे पाकिस्तान के साथ हम कच्छ में समझौते के लिए तैयार हैं, लेकिन अब उसने कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी है, वो अखनूर से हमारा कनेक्शन काटना चाहता है. ऐसे में गुरु गोलवलकर ने ना केवल मुश्किल के वक्त देश को एकजुट रखने का आव्हान किया बल्कि सभी से ये भी कहा कि इस दौरान कोई भी आंदोलन ना हो, अभी लोगों को समझा लें.
7 सितम्बर की इस बैठक के बाद 8 सितम्बर को गुरु गोलवलकर का आम जनता के लिए एक अपील रूपी संदेश प्रसारित हुआ, “मैं अपने देशवासियों, विशेष तौर पर संघ के स्वयंसेवकों से अपील करता हूं कि इस मुसीबत की घड़ी में उठने वाली समस्याओं के समाधान के लिए सरकार के साथ मिलकर काम करें. विस्थापितों, बीमारों और घायलों की सेवा करने, कानून-व्यवस्था बनाए रखने और सामान्य तौर पर मनोबल बनाए रखने, तीव्र राष्ट्रीय चेतना जगाने और पूरे देश में जीत के लिए लड़ने की इच्छाशक्ति पूरे देश की जनसंख्या में जगानी है”. जब गुरु गोलवलकर ने कहा- ‘आपकी सेना’ नहीं ‘हमारी सेना’ कहिए

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