
वोटिंग के फतवे देने वाले मुत्तवलियों पर लगाम से क्या थम जाएगा मस्जिदों का राजनीतिक इस्तेमाल?
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छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के आदेश के विरोध में जिस तरह AIMIM मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने मोर्चा खोला है, उससे लग रहा है कि बहुत जल्दी ही इस मुद्दे पर पूरे देश में बहस शुरू हो जाएगी. वैसे भी छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सलीम राजा का कहना है कि वो चाहते हैं इस आदेश को पूरे देश में तामील किया जाए.
छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड ने मस्जिदों के मुत्तवलियों (प्रबंधकों) से कहा है कि जुमे की नमाज पर मस्जिदों से अगर राजनीतिक ऐलान करना है तो पहले बोर्ड से अनुमति लेनी होगी. वक्फ बोर्ड ने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि मस्जिदों से अनावश्यक रूप से अनाप शनाप फतवे न जारी हो सकें. दरअसल, पिछले कुछ समय से राज्य में देखा जा रहा था कि मस्जिदों का इस्तेमाल लगातार राजनीतिक दलों के समर्थन के लिए किया जा रहा था. इस कदम के बारे में बोर्ड के एक अधिकारी ने सोमवार को बताया कि इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये धार्मिक स्थल राजनीति का अड्डा न बनें. जाहिर है, यह वक्फ बोर्ड का एक सुधारात्मक कदम है जिसकी जितनी भी तारीफ हो कम ही है. क्योंकि यह कार्य समाज में शांति बनाए रखने के लिए अपरिहार्य कदम जैसा है.
पर जैसा आमतौर पर होता है कि जनता को केवल नेताओं की भाषा ही समझ में आती है. मुस्लिम समाज को वक्फ बोर्ड की इस आवाज में ऐसा लग रहा है कि राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार के इशारे पर ये सब हो रहा है. यही कारण है कि कांग्रेस ने बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है. इस आदेश को लेकर केवल छ्त्तीसगढ़ में बवाल नहीं मचा हुआ है. छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सलीम राजा ने इस आदेश को पूरे देश में तामील कराने की मांग की है. जाहिर है कि राजनीति और गर्म होनी है. AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस आदेश के खिलाफ बेहद नाराजगी जताई है. 1- इस आदेश के पीछे वक्फ बोर्ड के क्या हैं तर्क
छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड का कहना है कि इस आदेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये धार्मिक स्थल राजनीति का अड्डा न बनें. पिछले महीने ही बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष, रिटायर्ड जस्टिस मिन्हाजुद्दीन के खिलाफ अविश्वास पत्र लाकर उन्हें हटाया गया और इसके बाद भाजपा के नेता डा. सलीम राजा को नया अध्यक्ष चुना गया था. यही कारण है कि भाजपा-शासित इस राज्य में वक्फ बोर्ड के इस कदम को विपक्षी कांग्रेस और आम मुसलमानों की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, जो तर्क छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राजा दे रहे हैं उससे हम सभी वाकिफ हैं कि किस तरह मस्जिदों का दुरुपयोग हो रहा है. मस्जिदों के इमामों से कुरान के अनुसार भाषण देने और राजनीति को नेताओं पर छोड़ने की अपील करते हुए कहते हैं कि इस शुक्रवार से, उन्हें अपने भाषणों के विषय के बारे में छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड को बताना होगा. हम मस्जिदों को राजनीति का अड्डा नहीं बनने देंगे. ये धार्मिक स्थान हैं और इन्हें ऐसा ही रहना चाहिए.
राजा कहते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ मुत्तवली इस्लामिक फतवे (धार्मिक आदेश) जारी करते हैं, जैसे कि किसे वोट देना है. मैंने वीडियो देखे हैं जिनमें कुछ मुत्तवली ‘जालिमों की सरकार’ जैसे शब्दों का उपयोग कर रहे हैं. क्या मुत्तवलियों को मस्जिद से ऐसे बयान देने चाहिए? ऐसे बयान क्या सामाजिक समरसता को बाधित नहीं करते हैं? राजा की बातों में दम है, वो उदाहरण देते हैं कि जम्मू-कश्मीर में शुक्रवार की नमाज के बाद पत्थरबाजी की घटनाओं के दौरान हमारे समुदाय के सदस्यों को गुमराह करने का इतिहास रहा है. जाहिर है कि अगर इस आदेश का सख्ती से पालन होता है तो जुमे के दिन होने वाले बवालों पर कुछ तो रोक लग ही जाएगी.
2- मुस्लिम समाज को क्या है दिक्कत
छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड अध्यक्ष डॉ सलीम राजा का कहना है कि फैसले के बाद हमें धमकी मिल रही है, मैं शहीद होने के लिए तैयार हूं. इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर देश भर में इसे लागू करने की मांग करूंगा. डॉ सलीम राजा सांसद असदुद्दीन ओवैसी के बारे में कहते हैं कि उनको इस्लाम की समझ नहीं है. दरअसल इस आदेश के आने के बाद राज्य ही नहीं देश के मुसलमानों में बहुत नाराजगी है. देश भर से इस आदेश के खिलाफ लोगों के बयान आ रहे हैं. आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इस आदेश के खिलाफ मोर्चा ही संभाल लिया है. सोशल साइट एक्स पर उन्होंने प्रतिक्रिया अपने चिर परिचित तल्ख शैली में व्यक्त की. ओवैसी लिखते हैं कि अब भाजपाई हमें बताएंगे कि दीन क्या है? क्या हमें अपने दीन पर चलने के लिए अब इनसे इजाजत लेनी होगी? वक्फ बोर्ड के पास ऐसी कोई क़ानूनी ताकत नहीं है. यदि ऐसा होता भी तो यह संविधान के अनुच्छेद 25 के खिलाफ होता. दरअसल इस आदेश में दीन के संबंध में तो कुछ लिखा ही नहीं है. इस आदेश में सिर्फ इतना ही लिखा है कि राजनीतिक तकरीरें न की जाएं. मतलब किसी राजनीतिक दल को लेकर तारीफ या मुखालफत नहीं होनी चाहिए.

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