'मुस्लिम पर्सनल लॉ आरोपी को POCSO की कार्रवाई से नहीं बचा सकता', दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी
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दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा है कि पॉक्सो 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए है. लिहाजा मुस्लिम पर्सनल लॉ आरोपी POCSO की कार्रवाई से नहीं बचा सकता है. दरअसल आरोपी ने ये तर्क देते हुए याचिका दाखिल की थी कि मुस्लिम कानून के अनुसार पीड़िता यौवन की आयु प्राप्त कर चुकी है, इसलिए POCSO की कठोरता लागू नहीं होगी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ आरोपी को POCSO की कार्रवाई से नहीं बचा सकता है. भले ही मुस्लिम लड़की जिसकी उम्र 16 साल से अधिक हो या वह यौवन की आयु प्राप्त कर चुकी हो.
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए है. यह प्रथागत कानून नहीं है, लेकिन इस अधिनियम का उद्देश्य है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाया जाए.
दरअसल, आरोपी ने 16 साल की लड़की से शारीरिक संबंध बनाए थे, लेकिन शादी नहीं हुई थी. इस मामले में आरोपी ने FIR रद्द करने के लिए आरोपी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. साथ ही याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि मुस्लिम कानून के अनुसार पीड़िता यौवन की आयु प्राप्त कर चुकी है, इसलिए POCSO अधिनियम की कठोरता लागू नहीं होगी.
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया. साथ ही कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ आरोपी को POCSO की कार्रवाई से नहीं बचा सकता है. पॉक्सो एक्ट 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए है. साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी के दावे पर विचार किया जा सकता है कि वह पीड़िता से शादी करने के लिए तैयार है.
पुलिस के मुताबिक आरोपी पीड़िता के घर गया था और पीड़िता के माता-पिता से पीड़िता से शादी की गुहार लगाई थी. पीड़िता के माता-पिता इस शर्त पर शादी के लिए राजी हुए थे कि शादी तभी होगी, जब पीड़िता 12वीं पास कर लेगी. हालांकि अभी तक शादी नहीं हुई है, क्योंकि पीड़िता अभी स्कूली छात्रा है.
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