
मद्रास हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग क्यों लाना चाहती है DMK? जानें क्या है थिरुपरनकुंद्रम विवाद
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DMK विधायकों ने मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी की है. DMK ने आरोप लगाया कि जस्टिस स्वामीनाथन का आदेश 2017 के हाईकोर्ट डिवीजन बेंच के फैसले के खिलाफ है.
तमिलनाडु में कार्तिगई दीपम विवाद अब राजनीतिक और संवैधानिक संकट में बदल गया है. DMK विधायकों ने मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी की है. यह कदम उस आदेश के बाद सामने आया, जिसमें जज ने थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित दीपथून नामक स्थान पर 4 दिसंबर को शाम 6 बजे तक कार्तिगई दीपम का दिया जलाने का आदेश दिया था.
यह स्थान सिकंदर बादूशा दरगाह के करीब होने के कारण संवेदनशील माना जाता है और सामान्य रूप से दीपम दूसरी जगह उचिपिल्लैयार मंदिर के पास स्थित दीप मंडपम पर जलाया जाता है. लेकिन जस्टिस स्वामीनाथन ने आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि इससे मुस्लिम समुदाय के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे, बल्कि दीप न जलाने से मंदिर की भूमि पर उसका मालिकाना हक कमजोर हो सकता है.
जज ने अपने आदेश में 1923 के एक पुराने फैसले का हवाला भी दिया और कहा कि मंदिर प्रबंधन को पहाड़ी की अनधिकृत कब्जे की कोशिशों से सावधान रहना होगा. उन्होंने यह टिप्पणी भी की कि दरगाह प्रबंधन ने पहले भी स्थिति बदलने की कोशिशें की हैं, इसलिए मंदिर प्रशासन के लिए सतर्क रहना अनिवार्य है.
हालांकि तमिलनाडु सरकार ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और तर्क दिया कि यह जगह कानून-व्यवस्था के लिहाज से संवेदनशील है तथा दीप जलाने से सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है. इसके बाद 4 दिसंबर को कई हिंदू समर्थक समूहों की तमिलनाडु पुलिस के साथ पहाड़ी की निचली चोटी, जिसे दीपाथून के नाम से जाना जाता है, पर कार्तिगई दीपम की तैयारी को लेकर झड़प हुई. सूत्रों के अनुसार, चार हिंदू समूहों- हिंदू मक्कल काची, हिंदू तमिलर काची, हनुमान सेना और हिंदू मुन्नानी के सदस्यों ने दीये जलाने के लिए तिरुपरनकुंड्रम पहाड़ी पर चढ़ने की कोशिश की, तभी उनकी स्थानीय पुलिस से झड़प हो गई.
डीएमके ने आदेश का किया विरोध
DMK ने आरोप लगाया कि जस्टिस स्वामीनाथन का आदेश 2017 के हाईकोर्ट डिवीजन बेंच के फैसले के खिलाफ है और यह चुनाव से पहले साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वाला है. पार्टी का कहना है कि संवैधानिक पद पर बैठे जज द्वारा ऐसी टिप्पणी करना, जो धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे, न्यायिक दुरुपयोग है.

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