भारत में अब भी बरकरार है बेटे की चाहत, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से चला पता
BBC
पांचवे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि भारत के क़रीब 80% परिवार कम से कम एक बेटे की चाहत रखते हैं.
भारत सरकार की ओर से हाल में जारी एक सर्वेक्षण के अनुसार देश के लिंग अनुपात में सुधार हुआ है, लेकिन आबादी का एक बड़ा तबका अभी भी कम से कम एक बेटा होने की ख़्वाहिश रखता है.
2019 से 2021 के बीच आबादी के व्यापक तबकों के बीच किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि सर्वेक्षण में शामिल लगभग 80 फ़ीसदी लोग कम से कम एक बेटा होने की इच्छा रखते हैं.
इस सर्वेक्षण से पता चला कि अभी भी बड़े पैमाने पर लोग बेटियों पर बेटों को तरजीह दे रहे हैं. भारत के पारंपरिक समाज की पुरानी मान्यता रही है कि खानदान का नाम बेटा ही आगे बढ़ाता है और वही बुढ़ापे में अपने मां-बाप की देखभाल करेगा. वहीं बेटियां शादी के बाद अपने घर यानी ससुराल चली जाएगी. साथ ही उसकी शादी में ख़ासा दहेज भी देना पड़ेगा.
इस सोच के ख़िलाफ़ सालों से काम करने वालों का मानना है कि इस सोच के चलते बेटियों के मुक़ाबले बेटों की संख्या ज़्यादा हो जाती है, जो लंबे अरसे से भारत के लिए शर्म की बात रही है.
पिछले क़रीब एक सदी के जनगणना आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या ज़्यादा रही है. 2011 में हुई जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 1,000 पुरुषों पर महज़ 940 महिलाएं थीं.