
पिछड़ा वर्ग के 3, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के 2 और... समझें- बिहार कैबिनेट विस्तार में जाति का चुनावी गणित
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बिहार में नीतीश कैबिनेट का विस्तार हो गया है. इस वक्त कैबिनेट विस्तार की जरूरत और उसके पीछे की सियासत पर गौर करने से पता चलता है कि इस बार के कैबिनेट विस्तार में भी जाति के चुनावी गणित का ख्याल ज्यादा रखा गया है. आज शपथ लेने वाले 7 मंत्रियों में पिछड़ा वर्ग के 3, अति पिछड़ा वर्ग के 2 और सामान्य वर्ग के 2 मंत्री शामिल हैं.
बिहार में नीतीश कैबिनेट का विस्तार हो गया है. सूबे में विधानसभा चुनाव के गिने चुने 8-9 महीने बचे हैं, ढाई-ढाई साल तक पाला बदलकर सरकार चलाने वाले नीतीश कुमार अपनी सियासत में कम्फर्टेबल हैं, लेकिन बीजेपी ने चुनाव से पहले 7 नए मंत्री बनाए हैं, क्योंकि अब तक डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के पास 3 मंत्रालय, मंत्री मंगल पांडे और नीतीश मिश्रा के पास 2-2 मंत्रालय और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा प्रमुख संतोष मांझी के पास भी 2 विभाग थे. जो अब नए मंत्रियों को दिए जाएंगे.
बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के इस्तीफे से भी एक मंत्रालय खाली हुआ है, वो भी बांटा जाएगा, लेकिन इस वक्त कैबिनेट विस्तार की जरूरत और उसके पीछे की सियासत पर गौर करने से पता चलता है कि इस बार के कैबिनेट विस्तार में भी जाति के चुनावी गणित का ख्याल ज्यादा रखा गया है. आज शपथ लेने वाले 7 मंत्रियों में पिछड़ा वर्ग के 3, अति पिछड़ा वर्ग के 2 और सामान्य वर्ग के 2 मंत्री शामिल हैं.
अब फुल कैपिसिटी में है नीतीश मंत्रिमंडल
इस विस्तार के साथ नीतीश मंत्रिमंडल अपनी फुल कैपिसिटी में आ गई है और उम्मीद है अगले 8-9 महीनों में 50 हजार करोड़ से अधिक की योजनाएं धरातल पर नजर आएंगी, जिसमें दक्षिण बिहार की 30 हजार करोड़ की 120 योजनाएं और उत्तर बिहार की 20 हजार करोड़ की 187 योजनाओं की कैबिनेट मंजूरी एक दिन पहले ही दी जा चुकी है.
क्या बिहार चुनाव में जाति का ही दांव चलेगा?
शपथ ग्रहण से आगे की सियासत की बात की जाए तो आज ही तेजस्वी यादव ने इस चुनावी लड़ाई में बीजेपी के खिलाफ आरक्षणखोर और आरक्षण चोर का नया नारा दिया है. एक तरफ बिहार में एनडीए सरकार मंत्रालयों में हर जाति, वर्ग, समुदाय, क्षेत्र, लिंग की उचित हिस्सेदारी का गणित बैठा रही है. उधर, तेजस्वी जाति गणना के हिसाब से हिस्सेदारी नहीं मिलने और नए आरक्षण की राह में रोड़ा अटकाने की तोहमत बीजेपी पर मढ़ रहे हैं. ऐसे में सवाल यही है कि क्या इस बार भी बिहार के चुनाव में जाति का ही दांव चलेगा? क्या जंगलराज और भ्रष्टाचार के सियासी तीर का मुकाबला इस बार इंडिया गठबंधन जातिगणना और आरक्षण संविधान के मुद्दे के साथ करने वाला है.

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