नेहा मर्डर केस: क्या 2023 विधानसभा चुनावों से सबक सीखेगी कर्नाटक भाजपा?
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कर्नाटक में नेहा मर्डर केस को लेकर बीजेपी आक्रामक हो गई है. पर जिस तरह विधानसभा चुनावों के पहले बजरंग बली से लेकर हिजाब, ईदगाह मैदान आदि मुद्दे को जीवित करने की कोशिश असफल साबित हुई थी, क्या बीजेपी उससे सबक सीखेगी?
कर्नाटक में बीजेपी को स्थापित करने में हिंदू-मुस्लिम मुद्दे की बड़ी अहमियत रही है.शायद यही कारण है कि हुबली में हुए नेहा हिरेमत मर्डर केस को लेकर एक बार फिर बीजेपी कर्नाटक की सियासत को उबाल रही है. पर जिस तरह बीजेपी को पिछले विधानसभा चुनावों में ध्रुवीकरण की कोशिशें के बावजूद मुंह की खानी पड़ी थी उससे लगता नहीं कि यह फॉर्मूला इस बार भी काम करने वाला है.
राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच इस मुद्दे को लेकर चुनावी माइलेज की जंग चल रही है. कांग्रेस को चिंता है कि अगर कहीं से भी सरकार बीजेपी के दबाव में आ गई तो परंपरागत मुस्लिम वोटर्स के नाराज होने का खतरा है. दूसरी ओर बीजेपी इस मुद्दे के बहाने हिंदुओं के ध्रुवीकरण का सपना देख रही है. दो दिन पहले ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हुबली जाकर पीड़िता के परिवार से मुलाकात की है. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी कर्नाटक की एक रैली में इशारों इशारों में इस कांड से कर्नाटकवासियों को चेताया.
दूसरी ओर कांग्रेस भी फूंक फूंक कर कदम रख रही है. अब बताया जा रहा है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने नेहा के पिता निरंजन हिरेमत को कॉल करके माफी मांगी है. उन्होंने फोन पर निरंजन से कहा कि इस मामले को लेकर वो बहुत दुखी हैं. वो इस दुख की घ़ड़ी में उनके साथ खड़े हैं. नेहा के पिता ने सरकार की कार्रवाई पर संतोष जताया है.तो क्या मान लिया जाए कि नेहा मर्डर केस पर चुनावी जंग खत्म हो चुकी है. शायद नहीं . क्योंकि यही तो राजनीति है. जहां हम समझते हैं कि खेल खत्म हो चुका है वहीं से राजनीति दांव पेच की शुरूआत होती है.
कर्नाटक बीजेपी के लिए ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला रही है
हुबली में ईदगाह मैदान बीजेपी के लिए ध्रुवीकरण की एक प्रयोगशाला रही है. 1991 में रथयात्रा और अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराने के बाद संघ और बीजेपी ने हुबली ईदगाह मैदान पर अंजुमन-ए-इस्लाम के दावे के खिलाफ कमर कस ली थी. 1992 में जब बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी ने श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराया था, तभी ईदगाह मैदान में भी झंडारोहण होना था.प्रशासन ने भारी बल प्रयोग से ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने से रोक दिया. फिर 1994 में बीजेपी नेता उमा भारती ने यही कोशिश की, पुलिस ने स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने को आतुर भीड़ पर गोलियां बरसा दीं और पांच लोगों की जान चली गई.
1994 में कांग्रेस के वीरप्पा मोइली कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. ईदगाह मैदान विवाद में हिंसा के बाद अनंत कुमार ने मोइली हटाओ अभियान छेड़ दिया. 1994 के चुनाव में बीजेपी को 40 सीटों पर जीत मिली. जो पूर्व में मिली सफलता से 10 गुना थी. बाद में बीजेपी ने दक्षिण में पहली बार कर्नाटक में सरकार बनाने में सफलता पाई.
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