'धार्मिक भावनाओं के जरिए अदालत को प्रभावित करना ठीक नहीं' इलाहाबाद हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
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Allahabad High Court On Loudspeaker Controversy: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लाउडस्पीकर से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए बेहद अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि धार्मिक भावनाओं के जरिए कोर्ट को प्रभावित करना ठीक नहीं.
मंदिर और मस्जिदों से लाउडस्पीकर के इस्तेमाल और उनकी आवाज की सीमा से जुड़ी याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि धार्मिक भावनाओं के जरिए अदालत को प्रभावित करना ठीक नहीं है. दरअसल, जहर नामक याचिकाकर्ता ने इस सिलसिले में याचिका दायर की थी.
कोर्ट ने मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता के व्यवहार पर भी असंतोष जताया है. याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दाखिल कर कहा था कि हाई कोर्ट के 2013 में दिए गए आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है. याचिका में कहा गया कि कोर्ट ने प्रदेश में मस्जिदों और मंदिरों में लाउडस्पीकरों के प्रयोग और उसकी ध्वनि सीमा को लेकर नीति बनाने का निर्देश दिया था. लेकिन सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया.
पहले भी आ चुकी है इस तरह की याचिका
बता दें कि कोर्ट इससे पहले भी इसे प्रायोजित मुकदमा बताते हुए मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर के संबंध में दायर अवमानना याचिका खारिज कर चुका है. पिछले आदेश में कोर्ट कह चुका है कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर अजान देना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है. आदेश में बदायूं के ककोड़ा थाना क्षेत्र में आने वाली दो मस्जिदों में सीमित आवाज के साथ लाउडस्पीकर लगाने की छूट दी गई थी. साथ ही कहा गया था कि लाउडस्पीकर के उपयोग के संबंध में नीति तैयार की जाए. याचिकाकर्ता के मुताबिक कोर्ट के इस आदेश का ही उल्लंघन किया जा रहा है.
सिर्फ मस्जिदों को किया जा रहा टारगेट- याचिकाकर्ता
कोर्ट ने पुराने आदेश पर टिप्पणी करते हुए कहा कि 2013 का आदेश अंतरिम था. वह मामला अभी हाई कोर्ट में विचाराधीन है. उसका फैसला आना अभी बाकी है. इसलिए यहां अवमानना का मामला नहीं बनता. याचिकाकर्ता ने इसके अलावा याचिका में यह भी कहा कि राज्य सरकार हाई कोर्ट के आदेश की आड़ में मनमाने ढंग से काम कर रही है. वह केवल अवैध मस्जिद हटा रही है और मंदिरों को नहीं हटा रही. कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील के इस तर्क को गलत माना. अदालत ने कहा कि एक वकील से कानून की मर्यादा के भीतर बहस करने की उम्मीद की जाती है. इस तरह के तर्क को अदालत के सामने नहीं रखना चाहिए. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. याचिका पर न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने सुनवाई की.
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