दुनिया की तमाम शोहरत मिल गई लेकिन अनु कपूर को इस बात का है अफसोस, अधूरी रहेगी ख्वाहिश
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अनु कपूर इन दिनों जियो सिनेमा पर आने वाली शॉर्ट फिल्म 'द लास्ट एनवेलॉप' को लेकर चर्चा में हैं. इस मुलाकात में अनु ने हमसे न केवल अपने इस प्रोजेक्ट की बात की, बल्कि ये भी बताया कि निजी जिंदगी में वे कैसे पिता और बेटे हैं. पेश है अनु के साथ हमारी खास बातचीत.
अपनी बेबाकी के लिए पहचाने जाने वाले अनु कपूर इन दिनों अपनी शॉर्ट फिल्म The Last Envelope को लेकर चर्चा में हैं. फिल्म में अनु और शीबा चड्ढा एक ऐसे दंपत्ति की भूमिका में हैं, जो एक एक्टर को हायर कर उसे बेटा बनाकर अपना दिन गुजारते हैं. पेश है उनसे हुई बातचीत का एक अंश.
इस शो से जुड़ने पर अनु कहते हैं, 'यह दिल को छूने वाली छोटी सी कहानी है. आज के दौर में जहां परिवार टूटते जा रहे हैं, ऐसे में बुर्जुगों के अंदर कितना अकेलापन हो जाता है, कहानी उसी के आधार पर पिरोई गई है. तनवी साहब का एक बहुत पुराना मराठी प्ले है 'संध्या छाया', उसमें सीनियर सिटीजन की बातों को बहुत ही खूबसूरती से दिखाया गया था. प्ले आज से चालीस साल पुराना है. ठीक उसी तरह इस शॉर्ट फिल्म द लास्ट एनवॉलप में इमोशनल ढंग से एक मां-बाप की दिक्कतों को दिखाया गया है. किस तरह से सीनियर सिटीजन अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए एक एक्टर हायर करते हैं, जो उनका बेटा बनकर कुछ वक्त उनके साथ गुजार सके. मुझे लगता है कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जहां हम अपने बुर्जुग मां-बाप को भूलते जाएंगे. बड़े शहरों में तो इसकी शुरुआत हो चुकी है, लेकिन अभी तक यह छोटे शहर व कस्बे इससे दूर हैं. मैं चाहता हूं, छोटे शहर की वो मासूमियत बनी रहे.'
मां-बाप और करियर के बीच फंसे बच्चों का भी तो यही तर्क होता है कि उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं. इस पर अनु कपूर कहते हैं, 'मां-बाप तो चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छी करियर बनाए, खुद को स्टैबलिश करें. हालांकि यहां बच्चों की जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि वो अपने करियर के साथ-साथ मां-बाप की जिम्मेदारी भी लें. वो अपने पैरेंट्स की तरफ उतना ही ध्यान दें, जितना अपने करियर पर फोकस करते हैं. मामला यहां थोड़ा क्रिटिकल हो जाता है कि वो इस भागती-दौड़ती जिंदगी में फंसकर रह जाते हैं.इसमें कौन सही और कौन गलत है, वो समझ पाना मुश्किल है.'
अनु कपूर एक पिता और एक बेटे भी हैं. खुद को वो कैसा पिता और बेटा मानते हैं ?जवाब में अन्नू कहते हैं, 'मैं तो लगभग 15 साल की उम्र से ही अपने परिवार से दूर रहा हूं. नियती ही ऐसी थी कि मैं जिंदगीभर उनसे दूर ही रहा. पूरी कोशिश रही कि मैं जितना हो सके, अपने माता-पिता की सेवा करूं. हालांकि मेरे बाबूजी और मां ने किसी बंधन में बांधने की कोशिश नहीं की थी. उन्होंने मुझे हमेशा वो आजादी दी है. उन्होंने कभी आश्रित होकर अपनी जिंदगी नहीं गुजारी है. कभी मलाल तो नहीं रहा, लेकिन मन में ये बात हमेशा रहती है कि काश थोड़ी और सेवा कर लेता माता-पिता की. खासकर मेरे बाबूजी ने मुझे कभी आर्थिक रूप से इतना समृद्ध नहीं देखा. वो अगर आज होते, तो अपने बेटे की सक्सेस देखते और मैं उन्हें तमाम वो खुशियां देने की कोशिश करता. मदन लाल कपूर (बाबूजी) ने अपने बच्चों को बहुत बेहतर ढंग से पाला है. उन्होंने हमेशा एक सीख दी है कि मौत कभी भी आ जाए, लेकिन जिंदगी जीना कभी मत छोड़ना और किसी से डरना नहीं. बेबाकी उन्हीं से आई हैं.'
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