
दीपू के साथी वर्कर ही बने दुश्मन, इस्तीफे पर भी नहीं हुए शांत... बांग्लादेश लिंचिंग की खौफनाक कहानी
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बांग्लादेश की गारमेंट फैक्ट्री में हिन्दू युवक दीपू चंद्र दास की मॉब लिंचिंग पर पुलिस ने कहा है कि अगर फैक्ट्री प्रबंधन की ओर से उन्हें समय पर जानकारी दी जाती तो उसकी जान बच सकती थी. इधर पुलिस ने कहा है कि उन्हें ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिससे ये पता चलता हो कि उसने किसी की भावनाएं आहत की हो.
बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के मॉब लिंचिंग का शिकार हुए हिन्दू युवक दीपू चंद्र दास की पूरी कहानी मीडिया में आई है. बांग्लादेश के मेयमनसिंह जिले एसपी (इंडस्ट्रियल) मोहम्मद फरहाद हुसैन खान ने कहा है कि उन्हें घटना की जानकारी उनके एक एसआई ने रात आठ बजे को दी.
बांग्लादेश के अखबार द डेली स्टार ने अपनी एक रिपोर्ट में एसपी के हवाले से कहा है कि, "हम तुरंत उस जगह की ओर दौड़ पड़े, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी. सड़क पर सैकड़ों लोग थे और इतनी बड़ी भीड़ में से उस जगह तक पहुंचना बहुत मुश्किल था. जब हम फैक्ट्री के गेट पर पहुंचे, तो हमने देखा कि एक गुस्साई भीड़ लाश को ढाका-मयमनसिंह हाईवे की ओर ले जा रही थी, जो लगभग दो किलोमीटर दूर था. करीब तीन घंटे तक 10 किलोमीटर लंबा ट्रैफिक जाम लग गया, जिससे पुलिस और दूसरी एजेंसियों की आवाजाही में गंभीर रुकावट आई."
एसपी फरहाद हुसैन खान ने कहा कि उनका दफ्तर घटना से 15 किलोमीटर दूर है जबकि भालुका पुलिस स्टेशन अपेक्षाकृत नजदीक है.
एसपी ने कहा कि अगर समय पर उन्हें कॉल किया जाता तो दीपू की जान बच सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
एसपी फरहाद हुसैन खान ने बताया कि हालांकि पुलिस फैक्ट्री प्रबंधन से संपर्क स्थापित कर रही है, लेकिन फैक्ट्री के किसी पदाधिकारी ने उनसे संपर्क नहीं किया है.
फैक्ट्री प्रबंधन ने क्या कहा?

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