
दिल्ली के महरौली स्थित ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार
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दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा आठ फरवरी को जारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसमें कोर्ट ने संरचनाओं की सुरक्षा के लिए निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका अधिकारियों के बयान के आधार पर निपटा दी थी.
सुप्रीम कोर्ट राजधानी दिल्ली की महरौली स्थित सदियों पुरानी धार्मिक संरचनाओं की सुरक्षा के निर्देश देने के आग्रह वाली अर्जी पर सुनवाई को तैयार हो गया है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले में पक्षकारों को उचित डॉक्युमेंट्स जमा कराने की इजाजत देने के साथ-साथ मामले की सुनवाई को लेकर तारीख भी तय कर दी है. कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 26 फरवरी को करेगा.
हाईकोर्ट ने निर्देश पारित करने से किया था इनकार
याचिका दिल्ली में महरौली के पास 13वीं सदी की आशिक अल्लाह दरगाह और बाबा फरीद की चिल्लागाह सहित कई अन्य सदियों पुरानी धार्मिक संरचनाओं को सुरक्षा के निर्देश देने को लेकर दायर की गई थी. दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा आठ फरवरी को जारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसमें कोर्ट ने संरचनाओं की सुरक्षा के लिए निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया गया था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह याचिका अधिकारियों के बयान के आधार पर निपटा दी थी. बयान में कहा गया था कि केंद्र या राज्य प्राधिकरण द्वारा घोषित किसी भी संरक्षित स्मारक या राष्ट्रीय स्मारक को नहीं गिराया जाएगा. उस दौरान अनधिकृत अतिक्रमण, विरासत के अधिकार और सांस लेने के अधिकार को संतुलित करने की जरूरत के संबंध में हाई कोर्ट ने टिप्पणियां भी की थी. इसी के खिलाफ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुचे हैं.
क्या है याचिका में
याचिका में कहा गया कि अगर विवादित आदेश के बाद धार्मिक और गैर-धार्मिक संरचनाओं की रक्षा करने में एजेंसी विफल रहती है तो क्या होगा? याचिकाकर्ता के अनुसार आदेश इस बात पर विचार करने में विफल है कि ये पुरानी संरचनाएँ अतिक्रमण नहीं हैं, क्योंकि वे सदियों से भूमि पर मौजूद हैं. उनके अनुसार 100 साल से अधिक पुरानी इन संरचनाओं को प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन कार्यकारी हित के अभाव में याचिकाकर्ता की जानकारी में इसे छोड़ दिया गया है. हालांकि, रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ने भी अपनी सूची में आशिक अल्लाह दरगाह के ऐतिहासिक महत्व को स्वीकार किया है.

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