
तमिलनाडु का इलेक्शन, 'भाषा युद्ध' का कनेक्शन... 6 दशक पुराना जख्म क्यों कुरेद रहे स्टालिन?
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तमिल अस्मिता, द्रविड़ गौरव और केंद्र के कथित हिंदी 'थोपने' के खिलाफ रही तमिलनाडु की राजनीति ने तीन-भाषा के फॉर्मूले को लागू नहीं किया. तमिलनाडु आज भी दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) पर अड़ा हुआ है और हिंदी के खिलाफ भावना यहां गहरी हैं. सीएम स्टालिन ने चुनाव से पहले यहकर कर राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है कि वे एक और भाषा युद्ध के लिए तैयार हैं.
भारत के सुदूर दक्षिण राज्य तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव 2026 से पहले एक बार फिर से भाषा का विवाद सुलग रहा है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने इस विवाद को बड़ा फलक देते हुए मंगलवार को तो यहां तक कह दिया कि तमिलनाडु 'एक और भाषा युद्ध' के लिए तैयार है. सीएम स्टालिन ने कहा कि केंद्र कहती है कि अगर तमिलनाडु नई शिक्षा नीति (NEP) लागू करता है तो उसे 2000 करोड़ रुपये मिलेंगे. लेकिन 2000 करोड़ क्या अगर केंद्र 10000 करोड़ रुपये भी देती है तो हम नई शिक्षा नीति नहीं लागू करेंगे.
सीएम स्टालिन ने कहा कि 1965 से ही डीएमके ने कई बलिदान दिए और हिंदी से मातृभाषा तमिल की रक्षा की. उन्होंने कहा कि यह भावना पार्टी सदस्यों के खून में समाई हुई है.
सवाल है कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन भाषा विवाद के उस अतीत को क्यों याद कर रहे हैं जिसका इतिहास हिंसा से भरा है. ये विवाद आज क्यों शुरू हुआ? गौरतलब है कि 2021 में DMK दस साल बाद तमिलनाडु की सत्ता में आई थी. इस बार DMK भाषायी अस्मिता के बहाने अपनी राजनीति को धार देने की कोशिश कर रही है.
दरअसल तमिलनाडु देश के उन राज्यों में शामिल है जहां अब तक नई शिक्षा नीति 2020 लागू नहीं हुई है. केंद्र सरकार की ओर से बार-बार कहने के बावजूद तमिलनाडु नई शिक्षा नीति लागू नहीं कर रही है.
नई शिक्षा नीति को लेकर तमिलनाडु का कई मसलों पर विरोध है. लेकिन द्रविड अभिमान पर गठित हुए इस राज्य की मुख्य आपत्ति तीन-भाषा फॉर्मूला को लेकर है.
पहले तीन-भाषा फॉर्मूला को समझिए

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