डॉक्टरों से मारपीट करने पर सात साल कैद, 5 लाख तक जुर्माना... जानें किस राज्य ने अध्यादेश को दी मंजूरी
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केरल के कोल्लम जिले में 10 मई को हाउस सर्जन डॉक्टर वंदना दास की हत्या कर दी गई थी. इसी के बाद प्रदेश में स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा की मांग को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गया था. इसी बीच सरकार ने अस्पताल सुरक्षा कानून संशोधन अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. इसमें कठोर सजा का प्रावधान किया गया है.
केरल सरकार ने बुधवार को स्वास्थ्य कर्मियों की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा अधिनियम में संशोधन के उद्देश्य से एक अध्यादेश को मंजूरी दी. इसके तहत हिंसा का कोई कृत्य करने, करने का प्रयास करने, उकसाने वालों के लिए कम से कम 6 महीने से लेकर 5 साल तक की जेल की सजा किया गया है. वहीं गंभीर रूप से शारीरिक चोट पहुंचने पर कम से कम एक साल की कैद और अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान किया है. कोट्टारक्कारा तालुक अस्पताल में एक मरीज द्वारा एक युवा हाउस सर्जन की चाकू मारकर हत्या कर दिए जाने के एक हफ्ते के भीतर इस अध्यादेश को मंजूरी दे दी गई है.
अध्यादेश के तहत अगर कोई भी व्यक्ति जो हिंसा करता है या करने की कोशिश करता है या हिंसा के लिए उकसाता है या प्रेरित करता है, तो उसे कम से कम 6 महीने और 5 साल की कैद और 50,000 रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा.
अगर स्वास्थ्य देखभाल सेवा कर्मी को गंभीर शारीरिक नुकसान पहुंचाया जाता है, तो ऐसे में दोषी को कम से कम 1 वर्ष और 7 वर्ष तक की कैद के अलावा कम से कम 1 लाख रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
मंत्रिमंडल की बैठक में केरल स्वास्थ्य देखभाल सेवा कर्मियों और स्वास्थ्य देखभाल सेवा संस्थानों (हिंसा और संपत्ति को नुकसान की रोकथाम) संशोधन अध्यादेश, 2012 लागू करने का निर्णय लिया गया है.
मौजूदा अधिनियम में पंजीकृत (अनंतिम रूप से पंजीकृत सहित) चिकित्सा व्यवसायी, पंजीकृत नर्स, चिकित्सा छात्र, नर्सिंग छात्र और स्वास्थ्य संस्थानों में कार्यरत पैरामेडिकल स्टाफ शामिल हैं. संशोधित अध्यादेश में पैरामेडिकल के छात्रों को भी शामिल किया जाएगा. इसमें पैरामेडिकल स्टाफ, सुरक्षा गार्ड, प्रबंधकीय कर्मचारी, एम्बुलेंस चालक, हेल्पर्स, जो स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में तैनात रहते हैं या काम करते को शामिल किया जाएगा.
अधिनियम के तहत पंजीकृत मामलों की जांच इंस्पेक्टर पद से नीचे के पुलिस अधिकारी नहीं करेंगे. प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने से 60 दिनों के भीतर मामले की जांच पूरी की जाएगी. जांच की कार्यवाही समयबद्ध तरीके से पूरी की जाएगी. मामले में स्पीड ट्रायल के लिए हर जिले में एक कोर्ट को विशेष अदालत के रूप में नामित किया जाएगा.
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