
ट्रंप के बदलते तेवरों के बीच जर्मनी चाह रहा अपना गोल्ड वापस, क्यों दर्जनों देशों ने अमेरिकी कस्टडी में रखा है सोना?
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अमेरिका की विदेश नीति में बार-बार बदलाव को देखते हुए दुनिया में तो हलचल है ही, जर्मनी में इसे लेकर खासी उथल-पुथल है. डोनाल्ड ट्रंप के बदलते मूड की वजह से व्यापारिक मामलों में देश उतना भरोसेमंद नहीं दिख रहा. ऐसे में जर्मन नेताओं को डर है कि अगर कल को अमेरिका ने उनका सोना लौटाने से इनकार कर दिया तो क्या होगा?
अमेरिका अब पहले जैसे भरोसेमंद देश की तरह नहीं देखा जा रहा. उसने ऐतिहासिक तौर पर दुश्मन रहे देश रूस से दूरी कम करनी शुरू कर दी, जबकि पुराने साथियों को धमका रहा है. इस बीच कई देश अपने रास्ते बदल रहे हैं. हाल में जर्मनी में भी यूएस को लेकर शक गहराने लगा और वो वहां के बैंक में रखा अपना गोल्ड रिजर्व वापस पाने की बात करने लगा. लेकिन अपने घर की तिजोरी की बजाए जर्मनी ने अमेरिकी लॉकर क्यों चुना?
जर्मनी में चर्चा हो रही है कि देश का जो सोना विदेशों, खासकर अमेरिका में रखा है, उसे वापस लाया जाना चाहिए. वहां के सेंट्रल बैंक के अलावा अब नेता भी यह मुद्दा उठा रहे हैं. हाल में सेंटर-राइट पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन के लीडर खुलकर कहने लगे कि इतने बड़े राष्ट्रीय खजाने को यूएस में रखना अब कोई समझदारी नहीं.
कितना गोल्ड है जर्मनी के पास
इस देश का कुल सोना करीब 3400 टन के आसपास है, जो अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गोल्ड रिजर्व है. लगभग दशकभर पहले तक इसका बड़ा हिस्सा अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस में रखा था. अकेले न्यूयॉर्क के फेडरल रिजर्व बैंक में लगभग आधा हिस्सा था. बीते कुछ सालों में राजनैतिक अस्थिरता को देखते हुए जर्मनी ने अपना गोल्ड धीरे-धीरे वापस लाना शुरू कर दिया. हालांकि अब भी 1200 टन से ज्यादा यानी लगभग 37 प्रतिशत सोना न्यूयॉर्क में ही रखा हुआ है.
फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क में जर्मनी ही नहीं और भी कई देशों का गोल्ड रखा हुआ है. ये इतना सेफ है कि अब तक इंटरनेशनल गोल्ड कस्टडी सेंटर की तरह काम करता रहा. इसके अलावा अगर देश आपस में सोना ट्रांसफर करते हैं तो दोनों के अकाउंट अमेरिका में होते ही हैं, इससे गोल्ड ट्रांसपोर्ट की लागत बच जाती है.

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