
जनरल अयूब, जिया-मुशर्रफ से आसिम मुनीर तक... कश्मीर के नाम पर PAK सेना क्या खेल करती आई?
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पहलगाम आतंकी हमले के बाद से पाकिस्तान में भारत को लेकर हड़कंप मचा हुआ है. शुरुआत में भड़काऊ बातें कर रहे पाक सेना प्रमुख आसिम मुनीर भी एकदम से पिक्चर से गायब हो गए. कयास हैं कि वे देश छोड़कर भाग चुके, या बंकर में छिपे हुए हैं. वैसे कश्मीर मुद्दा हमेशा से ही पाकिस्तानी जनरलों के लिए एक हथियार रहा, जिससे सत्ता के बरक्स और एक सत्ता तैयार हो जाए.
भारत से तनाव के बीच पाकिस्तान शुरू-शुरू में तो शेर बनता रहा, लेकिन अब वो ताकतवर देशों के सामने सफाइयां देते हुए मदद मांग रहा है. यहां तक कि वहां के सैन्य जनरल आसिम मुनीर भी ऊलजुलूल बयानबाजियां छोड़ गायब हो चुके हैं. खुद पाक मीडिया में उनके अंडरग्राउंड होने या देश से भाग जाने के अनुमान लगाए जा रहे हैं. मुनीर हों या पिछले सारे सैन्य लीडर, सबने ही अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कश्मीर मुद्दे को हवा दी. यहां तक कि इसका असर ये हुआ कि सेना अलग सत्ता बन गई, जो राजनीतिक सत्ता पर असर डालने लगी.
जब भी पाकिस्तान में लोग महंगाई या बेरोजगारी जैसे सवाल उठाते हैं, सेना और सेना के सपोर्ट वाली सरकारें उनका ध्यान कश्मीर की तरफ मोड़ देती हैं. वे कहती हैं कि असली दुश्मन भारत है और कश्मीर को पाकर ही देश तरक्की कर सकेगा. इससे लोगों का गुस्सा डायवर्ट हो जाता है और वे सेना की हां में हां मिलाने लगते हैं. इस बहाने से आर्मी को भारी बजट, खास अधिकार और राजनीति में दखल मिल जाता है.
कुल मिलाकर, कश्मीर एक बहाना बन चुका, जिसे भुना-भुनाकर आर्मी ने खुद को इतना मजबूत कर लिया, कि असल सरकार भी उनसे डरने लगी. अब हालत यह है कि वहां असली ताकत सरकार के पास नहीं, बल्कि सेना के पास है, वही सरकारें बनाती-गिराती रही.
देश के बंटवारे के साथ ही कश्मीर को वेपन बनाने का सिलसिला चल निकला.
पचास के दशक के आखिर में पाकिस्तान में पहला सैन्य तख्तापलट हुआ. तब फिरोज खान नून की सरकार को हटाते हुए जनरल अयूब खान देश के सैन्य शासक बन गए और बाद में खुद को प्रेसिडेंट घोषित कर दिया. इस बीच देश की इकनॉमिक हालत खस्ता होती जा रही थी, तभी राष्ट्रपति खान ने बड़ा फैसला लेते हुए भारत से लड़ाई का फैसला ले लिया.

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