गोधरा कांड: गुजरात सरकार ने किया 15 दोषियों की रिहाई का विरोध, SC ने मांगी रिपोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनमें से कुछ दोषी पत्थरबाज थे और वे जेल में लंबा समय काट चुके हैं. ऐसे में कुछ को जमानत पर छोड़ा जा सकता है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया है कि वह हर दोषी की भूमिका की जांच करेंगे कि क्या वाकई इनमें से कुछ लोगों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है.
गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में साल 2002 के गोधरा कांड में पत्थरबाजी करने वालों में से 15 दोषियों की रिहाई का विरोध किया है. सरकार ने पत्थरबाजों की भूमिका को गंभीर बताया. यहां सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह महज पत्थरबाजी का केस नहीं है. मामला है कि पत्थरबाजी के चलते जलती हुई बोगी से 59 पीड़ित बाहर नहीं निकल पाए थे. उन्होंने कहा कि पत्थरबाजों की मंशा यह थी कि जलती बोगी से कोई भी यात्री बाहर न निकल सके और बाहर से भी कोई शख्स उन्हें बचाने के लिए न जा पाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनमें से कुछ दोषी पत्थरबाज थे और वे जेल में लंबा समय काट चुके हैं. ऐसे में कुछ को जमानत पर छोड़ा जा सकता है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया है कि वह हर दोषी की भूमिका की जांच करेंगे कि क्या वाकई इनमें से कुछ लोगों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से 15 दिसंबर को इसको लेकर अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा है.
हालांकि, समय के अनुरोध का अपीलकर्ताओं के वकील ने विरोध किया, लेकिन बेंच राज्य को मामले की जांच करने की अनुमति देने के लिए समय देने पर सहमत हो गई. पीठ ने कहा कि यदि राज्य प्रस्तावित मामले की जांच करता है, तो यह सभी 15 अपीलकर्ताओं को जमानत याचिका दायर करने के लिए जोर देने की आवश्यकता को समाप्त कर देगा.
अदालत गोधरा ट्रेन कांड के मामले में दोषियों में से एक द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार कर रही थी. गुजरात दंगों के मामले में कई अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखने वाले गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिकाओं के एक बैच में आवेदन दायर किया गया था. साल 2017 में गोधरा ट्रेन नरसंहार मामले में कई अपीलों पर सुनवाई करते हुए, गुजरात हाई कोर्ट ने ज्यादातर 31 लोगों की दोषसिद्धि और 63 अन्य को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा था, जबकि 31 दोषियों में से 11 को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
इस साल मई में, दोषियों में से एक को सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने की अवधि के लिए अंतरिम जमानत दी थी. इसका आधार था कि उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थी और उसकी बेटियां मानसिक रूप से विकलांग थीं. नवंबर में, अदालत ने मार्च 2023 तक उसकी जमानत बढ़ा दी है.
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