
क्रेडिट नहीं मिला तो लगाई डायरेक्टर के ऑफिस में आग, मशहूर है पीयूष मिश्रा का 'पेट्रोल कांड'
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पीयूष मुंबई पहुंचे तो डायरेक्टर से पहली मुलाकात अच्छी नहीं रही. लेकिन वो परिवार की खातिर रुके रहे. पीयूष का लेखन शुरू हो गया था. ये मुंबई में उनके पसंद का पहला काम था. पीयूष सुबह 7 बजे लिखने बैठते तो एक बजे तक लगातार लिखते. फिर खाना खाते, उसके बाद फिर पांच बजे तक लिखते. फिर डायरेक्टर के पास जाकर नैरेशन देते.
'मुझे पैसे नहीं चाहिए...मैं अपना क्रेडिट नहीं छोड़ूंगा.' जवाब मिला- कोई एग्रीमेंट है तुम्हारे पास? डायेरेक्टर का इतना कहना था, और पीयूष मिश्रा के अंदर गुस्से का सैलाब उमड़ पड़ा था. वो सन्न खड़े थे. अपनी पत्नी-बच्चे को दिल्ली में अकेला छोड़कर मुंबई में इस डायरेक्टर के लिए डेढ़ साल से अपनी चप्पलें घिस रहे थे. और आखिर में मिला क्या...धोखा!!
ये किस्सा है पीयूष मिश्रा का, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. वो एक्टर, लिरिसिस्ट, प्ले राइटर, म्यूजिक कम्पोजर, सिंगर और स्क्रीनराइटर भी हैं. कम ही लोग जानते हैं, कि उन्हें मुंबई नगरी में कितनी जद्दोजहद करनी पड़ी थी. मुंबई से उन्हें नफरत थी. इसकी सारी वजह उन्होंने अपनी किताब 'तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा' में लिखी हैं. ऐसा ही एक किस्सा हम आपको बताने जा रहे हैं, जो बॉलीवुड की दुनिया में आज भी 'पेट्रोल कांड' के नाम से मशहूर है. ये नाम भी खुद एक्टर ने अपनी किताब में दर्ज किया है.
पत्नी के कहने पर फिर गए मुंबई पीयूष मिश्रा को मुंबई कभी रास नहीं आई, वो हमेशा से दिल्ली में ही रहना चाहते थे. उन्हें पैसों का बहुत लालच नहीं था. एक एक कर उनके सारे थियेटर के साथी मुंबई चले गए. ये बात पीयूष को बहुत खलती थी. वो दिल्ली रहकर ही थियेटर करते रहना चाहते थे. लेकिन एक दिन उन्हें एक चिट्ठी मिली, जिसमें लिखा था कि उन्हें एक बड़े डायरेक्टर की तरफ से ऑफर मिला है. फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने का. पीयूष का परिवार बहुत खुश हुआ. क्योंकि एक तो ऑफर सामने से आया, दूसरा अमाउंट बड़ा मिलना था. घर की तंग हालत और पत्नी-मां की मान-मन्नोवल पर पीयूष इस ऑफर को एक्सेप्ट करने और दिल्ली छोड़कर मुंबई जाने के लिए राजी हो गए.
पीयूष मुंबई पहुंचे तो डायरेक्टर से पहली मुलाकात अच्छी नहीं रही. लेकिन वो परिवार की खातिर रुके रहे. पीयूष का लेखन शुरू हो गया था. ये मुंबई में उनके पसंद का पहला काम था. पीयूष सुबह 7 बजे लिखने बैठते तो एक बजे तक लगातार लिखते. फिर खाना खाते, उसके बाद फिर पांच बजे तक लिखते. फिर डायरेक्टर के पास जाकर नैरेशन देते. रात के दस बजे वहां से निकलते, शराब खरीदते और फिर वापस लोखंडवाला (डायरेक्टर का गेस्ट हाउस, जहां पीयूष के रहने का इंतजाम किया गया था) पहुंच जाते. डेढ़ साल तक उनका यही रूटीन रहा. घर पर भी उन्होंने खत लिखकर बता दिया कि यहां सब टकाटक है.
पीयूष के मन में हमेशा से मलाल रहा कि उन्होंने अपनी पत्नी का कभी पूरी तरह से साथ नहीं दिया. उन्हें हमेशा दर्द ही दिया, इसलिए वो किसी भी कीमत पर इस प्रोजेक्ट को पूरा कर नाम और पैसा दोनों कमाना चाहते थे. ताकि पत्नी के आगे गर्व से खड़े हो सके.
डायरेक्टर ने एग्रीमेंट नहीं, बस दिया भरोसा

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