
कांग्रेस के पास हिमाचल प्रदेश में सरकार बचा पाने के कितने विकल्प हैं?
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हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए स्थिति बेकाबू हो चुकी है. सुखविंदर सिंह सुक्खू के सामने आलाकमान की दी हुई कुछ लकीरें भर हैं, जिन्हें वो शिद्दत से पीट रहे हैं. तो क्या कांग्रेस के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है? मुद्दा ये है कि क्या कांग्रेस विकल्पों पर विचार कर रही है? क्या अमल के लिए तैयार है?
विकल्प कभी खत्म नहीं होते, भले ही उनका इस्तेमाल न हो पाये. वैसे ही जैसे हर समस्या का समाधान होता है, बस निकाले नहीं जाते या निकल नहीं पाते. ऐसा करने के लिए बड़े ही मुश्किल टास्क को अंजाम देना होता है, और वो इतने मुश्किल होते हैं कि करीब करीब नामुमकिन होते हैं - हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के पास जो भी बचे-खुचे विकल्प हैं, ऐसे ही हैं.
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की तरफ से इस्तीफे की पेशकश की खबर आई तो लगा कि ये कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. हालांकि, सुक्खू ने कुछ देर बाद मीडिया के सामने आकर साफ किया कि इस्तीफा नहीं दिया है. वैसे अगर सुक्खू चाहते तो इस्तीफे की पेशकश से बड़ा संदेश दे सकते थे - और ये संदेश उनके विरोधी गुट के लिए होता.
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और उनके बेटे को कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से ये मजबूत संदेश होता. सुक्खू के इस्तीफे की पेशकश राज्यसभा चुनाव में क्रॉसवोटिंग करने वाले कांग्रेस के 6 विधायकों के लिए भी मरहम होती - और राज्यसभा चुनाव से पहले तक कांग्रेस सरकार का समर्थन करते आये निर्दलीय विधायकों के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण होता. बहरहाल, अब तो सुक्खू की बात ही माननी पड़ेगी, लेकिन बगैर किसी चिंगारी के धुआं तो नहीं उठता. ये भी हो सकता है कि ये किसी और रणनीति का हिस्सा हो.
अब पूरा दारोमदार दिल्ली से भेजे गये कांग्रेस के दोनों पर्यवेक्षकों पर है. दिल्ली से कांग्रेस ने कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ऑब्जर्वर बना कर शिमला भेजा है.
कर्नाटक में बीजेपी के दो विधायकों से क्रॉस वोटिंग करा लेने के बाद डीके शिवकुमार का आत्मविश्वास भी बढ़ा हुआ होगा. ऐसे प्रयास तो पहले वो कर्नाटक की जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार को बचाने के लिए भी किये थे, लेकिन हर बार कामयाबी मिलती भी तो नहीं है. हिमाचल प्रदेश में भी डीके शिवकुमार के लिए नया इम्तिहान है.
1. जैसे भी मुमकिन हो, विरोधी गुट को मना लेना ही आखिरी विकल्प है

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