
कश्मीरी अलगाववादी नेता के नजरबंद होने का दावा- क्या है हाउस अरेस्ट, किस तरह की बंदिशें रहती हैं?
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हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष उमर फारूक मीरवाइज के नजरबंद होने का दावा आ रहा है. इससे पहले भी वे हाउस अरेस्ट यानी नजरबंद किए जा चुके हैं. कई और आरोपियों के मामले में भी नजरबंदी का फैसला सुनाया गया. समझिए, क्या होता है हाउस अरेस्ट, और किस तरह जेल की हिरासत से अलग है.
कश्मीरी अलगाववादी नेता उमर फारूक को अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद नजरबंद कर लिया गया था. लंबे समय बाद रिहाई हुई, लेकिन अब दोबारा उनके हाउस अरेस्ट की बात कही जा रही है. उनके संगठन से जुड़ी अंजुमन औकाफ जामिया मस्जिद ने ऐसा बयान दिया. फिलहाल इस बात की सरकारी पुष्टि नहीं हो सक है. इस बीच ये जानते हैं कि नजरबंद होना और कैद होने में क्या फर्क है.
ये है नजरबंदी
भारतीय कानून में हाउस अरेस्ट एक लीगल तरीका है. इससे किसी को सीधे-सीधे जेल नहीं भेजा जाता, बल्कि ऐसे किसी सेटअप में रख दिया जाता है, जहां से बाहर जाने की मनाही हो. जिसे अरेस्ट किया जा रहा हो, ये उसका घर भी हो सकता है, या आसपड़ोस का कोई घर भी, जहां रहने-खाने की सारी सुविधाएं हों.
किन्हें किया जाता है नजरबंद ये जेल का विकल्प तो है, लेकिन रवैए में हल्का. हाउस अरेस्ट उन लोगों को दिया जाता है, जो कम खतरनाक माने जाते हों, या फिर जिन्हें सीधे-सीधे कैदियों के साथ नहीं रखा जा सकता है. ऐसे लोग भी नजरबंद होते हैं, जिनकी कोई खास मेडिकल जरूरत हो, जो जेल में रोजाना पूरी न हो सके. किसी मुहिम की आड़ में लोगों को उकसाने की कोशिश करने वालों को भी ये सजा मिलती है. जैसा उमर फारूक के मामले में लगता है. पहले उन्हें कश्मीर से धारा 370 हटाने के साथ नजरबंद किया गया था क्योंकि वे अपने अलगाववादी तौर-तरीकों के लिए जाने जाते रहे. अब फिर से उनके लोग ये दावा कर रहे हैं.
कैसे रखी जाती है नजर

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