
कन्याकुमारी में PM मोदी कर रहे ध्यान... जानिए कैसे और कितनी देर करना चाहिए मेडिटेशन
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ध्यान हमें इतना सक्षम बनाता है कि हम किसी भी चीज का प्रतिरोध कर सकें. ध्यान हमें प्रकृति के करीब पहुंचाता है और उसमें निहित सुंदरता को हमारे सामने लेकर आता है. ध्यान हमें धरती पर ही स्वर्ग का अहसास कराता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय तमिलनाडु के कन्याकुमारी में प्रसिद्ध विवेकानंद रॉक मेमोरियल में ध्यान कर रहे हैं. खास बात यह है कि इस प्रसिद्ध जगह में ही स्वामी विवेकानंद ने 1892 में ध्यान किया था. पीएम मोदी का यहां पर मेडिटेशन करना इस जगह की आध्यात्मिक विरासत की याद दिलाता है. इस जगह की विशेषता को जानने से पहले आइए आपको बताते हैं कि आखिर मेडिटेशन है क्या और उसे किस तरह से करना चाहिए.
क्या है ध्यान? ध्यान हमें इतना सक्षम बनाता है कि हम किसी भी चीज का प्रतिरोध कर सकें. ध्यान हमें प्रकृति के करीब पहुंचाता है और उसमें निहित सुंदरता को हमारे सामने लेकर आता है. ध्यान हमें धरती पर ही स्वर्ग का अहसास कराता है. ध्यान के जरिए हम कुछ ही देर में अपनी प्रकृति को बदल सकते हैं.
किस तर ध्यान किया जाना चाहिए? वैसे तो ध्यान करने के दर्जनों तरीके हैं. लेकिन सभी का अपना अलग-अलग स्वभाव है. हालांकि, सभी का मकसद मन को काबू में करना है. दरअसल, मन एक झील की तरह होता है, जिस तरह झील में पत्थर के गिरने पर लहरें उठती हैं. ठीक उसी तरह बाहरी चीजें हमें अशांत करती रहती हैं. ध्यान हमें यह सिखाता है कि किस तरह हमें अपने अशांत मन को शांत रखना है. हमारा मन अक्सर यहां-वहां घूमता रहता है. कभी हम लंदन के बारे में सोचने लगते हैं तो कुछ देर बाद ही न्यूयॉर्क के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं. ध्यान इस तरह के विचलन को ही रोकता है.
ध्यान के लिए कैसा माहौल चाहिए? जो भी लोग ध्यान करना चाहते हैं, बेहतर होगा कि वे इसकी प्रैक्टिस के लिए एक कमरे को तय कर लें. पवित्रता का ध्यान रखते हुए उस कमरे में सोना नहीं चाहिए. उस कमरे में स्नान करके पूरी तरह से शुद्ध होकर ही प्रवेश करना चाहिए. उस कमरे में हमेशा फूल रखना चाहिए. साधना के लिए यह वातावरण सबसे उत्तम है. मन को पसंद आने वाले चित्र भी लगाना चाहिए. सुबह-शाम धूप जलाना चाहिए. उस कमरे में न तो झगड़ा करें, न क्रोध करें, न ही अपवित्र विचार रखें. केवल उन्हीं लोगों को वहां प्रवेश करने दें, जो आपके समान विचार रखते हों.
ध्यान करने का सही समय? प्रतिदिन कम से कम दो बार अभ्यास करना चाहिए. सबसे अच्छा समय सुबह और शाम का है. जब रात दिन में बदलता है और दिन रात में. इन समयों पर शरीर शांत होने की प्रवृत्ति रखता है. हमें उस प्राकृतिक स्थिति का लाभ उठाना चाहिए और फिर अभ्यास शुरू करना चाहिए. यह नियम बना लें कि जब तक अभ्यास न कर लें, तब तक कुछ ना खएं. अगर ऐसा करेंगे तो भूख की ताकत ही आलस्य को तोड़ देगी. आपने देखा होगा कि हमारे देश में बच्चों को सिखाया जाता है कि जब तक वे पूजा न कर लें, तब तक कुछ न खाएं और कुछ समय बाद यह उनका स्वाभाव हो जाता है.
ध्यान के कितने चरण होते हैं? ध्यान में तीन चरण होते हैं. पहले को धारणा कहते हैं. इसमें किसी वस्तु पर मन को एकाग्र किया जाता है. उदाहरण के तौर पर अपने मन को गिलास पर एकाग्र कीजिए. गिलास को छोड़कर अपने मन से हर दूसरी वस्तु को बाहर निकाल दीजिए. ध्यान रखें कि मन डगमगाए ना. जब यह मजबूत हो जाता है और ज्यादा नहीं डगमगाता है तो इसे ध्यान कहते हैं. इसके बाद एक और उच्चतर अवस्था होती है, जब गिलास और हमारे बीच का अंतर खत्म हो जाता है. इसे समाधि या तल्लीनता कहते हैं. इस समय मन और गिलास एक समान हो जाते हैं. सभी इंद्रियाँ रुक जाती हैं. अन्य इंद्रियों के माध्यम से काम करने वाली सभी शक्तियां मन में केंद्रित होती हैं.

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