एनिमल के हीरो ने पत्नी को दिया धोखा, विलेन बोले- हीरोइन ने थप्पड़ मारा इस पर भी सोचो
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Animal फिल्म के डायरेक्टर संदीप वांगा रेड्डी जब भी कोई फिल्म लेकर आते हैं, तो ऐसा संयोग रहा है कि उनकी फिल्मों के बाद कुछ टर्म्स जरुर सोशल मीडिया पर डिबेट का विषय बन जाते हैं. कबीर सिंह में जहां सेक्सिस्ट, 'मिसॉजिनी' 'टॉक्सिक मस्क्यूलिनिटी' जैसे शब्द चर्चा में थे, इन दिनों 'अल्फा मेल' शब्द को लेकर बात हो रही है.
एनिमल में एक्टर सौरभ सचदेव का किरदार छोटा मगर इंपैक्टफुल रहा है. फिल्म में विलेन बने सौरभ को इस बात की खुशी है कि फिल्म की चर्चा चारो तरफ है. हालांकि निगेटिव रिव्यूज व कमेंट्स को लेकर भी सौरभ का अपना जस्टिफिकेशन है.
फिल्मों में हीरो के प्रोजेक्शन पर कई सवाल उठाए गए हैं. अल्फा मेल की परिभाषा पर भी स्वानंद किरकिरे ने अपनी राय रखी है. एक ओर जहां फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धड़ल्ले से कमाई करती जा रही है, तो वहीं सोशल मीडिया पर संदीप वांगा रेड्डी के इस क्रिएशन पर तमाम तरह के डिबेट्स चल रहे हैं. फिल्म को लेकर बढ़ रही निगेटिविटी पर सौरभ कहते हैं, 'मुझे लगता है डिबेट बेवफजूल हैं. आप बताएं, जब रामगोपाल वर्मा की सत्या आई थी, तो उस वक्त भी उनपर आरोप लगे थे कि वो अंडरवर्ल्ड की दुनिया को ग्लोरीफाई कर रहे हैं. क्या फिल्म देखने के बाद हर कोई गुंडा बन गया. या फिर हम साथ-साथ हैं, आई थी तो यह बात होने लगी थी कि अब जॉइंट फैमिली में लोग रहने लगेंगे, ऐसा तो नहीं हुआ है न. दरअसल ऐसा कुछ नहीं होता है. सिनेमा जिंदगी की तरह बेशक है, लेकिन असल जिंदगी से कहीं परे है. सिनेमा एक आर्ट है, जिसमें हर तरह के रंग होंगे. मुझे नहीं लगता कि इससे लोगों के मॉरल्स या वैल्यूज नहीं बदल जाते हैं. अब मेरे जितने कजिन हैं, क्या हम फिल्म देखने के बाद उसे फॉलो करने लगेंगे.'
सिनेमा और असल जिंदगी में फर्क है
सौरभ आगे कहते हैं,' हम बचपन से इस बात से वाकिफ हैं कि सिनेमा और असल जिंदगी में डिफरेंस है. हम सिनेमा एंटरटेन होने के लिए जाते हैं. अब गदर में जाकर खंभा या हैंडपंप उखाड़कर एक्टर इतने लोगों को मारता है, क्या वो असल जिंदगी में संभव है. इतना कॉमन सेंस तो लोगों में हैं. मुझे लगता है, जो लोग बातें कर रहे हैं, वो फालतू की बकवास है. हम किसी के अंदर सिनेमा कॉमन सेंस है. उदाहरण के तौर पर फिल्म में जब बच्चा भागते-भागते बड़ा होता दिखता है, तो क्या हम ये बोलते हैं कि ये कैसे हो गया, वो तो बच्चा भाग रहा था, वो बड़ा कैसे हो गया. क्योंकि सब जानते हैं कि ये टाइम लैप्स है. हमारे पास वो इंटेलीजेंट है. सभी को पता है कि असल जिंदगी में ऐसा नहीं होता है. रणबीर बर्फी का किरदार कर रहे थे, तो क्या वो बन गए.'
अल्फा मेल नहीं, किरदार के डिटेल को समझना जरूरी
अल्फा मेल के किरदार पर बात करते हुए सौरभ बताते हैं, 'मैं यह मानता हूं कि यह एक डायरेक्टर का पॉइंट ऑफ व्यू है. मैंने जहां तक समझा है, यहां भी डायरेक्टर अल्फा मेल को ग्लोरीफाई नहीं कर रहा था. किरदार की डिटेल में जाएं, तो देखें वो अपनी वाइफ से बहुत प्यार करता है और अपने पिता से भी उतना ही प्यार करता है. अब उसका स्ट्रगल है कि वो इन दोनों के बीच का किरदार है. वो किरदार अपनी बीवी को लेकर ऑनेस्ट है, उससे कुछ छिपाया नहीं है. मुझे लगता है कि उस किरदार की कॉम्प्लेक्सिटी को समझना जरूरी है. बल्कि यहां तो वाइफ को ज्यादा स्ट्रॉन्ग दिखाया गया है कि वो लगातार थप्पड़ मार रही है. उसने जाहिर भी किया है कि वो अपनी वाइफ के पैरों पर रहता है. लोगों को इसके बिहेवियर को पढ़ने की जरूरत है. औरत ने भी तो थप्पड़ मारा, वहां कोई सवाल क्यों नहीं उठाया था. हमारे सिनेमा में बहुत सी चीजों को ग्लोरीफाई किया जाता रहा है. हमारी फिल्मों में एक्ट्रेसेज पोयट, सिंगर्स के प्यार में पड़ती रही हैं. तो बैलेंस हर जगह है.'
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