एक व्यक्ति के एक ही सीट से चुनाव लड़ने के कानून की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में खारिज
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चुनाव के लिए एक व्यक्ति एक सीट का कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम में सुनवाई हुई याचिकाकर्ता ने कहा कि 1996 तक एक व्यक्ति कई सीटों पर चुनाव लड़ सकता था लेकिन अब दो पर लड़ सकता है.
दो निर्वाचन क्षेत्र से एक साथ चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का आदेश पारित करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. सीजेआई की अगुआई वाली पीठ ने इस टिप्पणी के साथ यह जनहित याचिका खारिज कर दी कि जन प्रतिनिधित्व कानून भारतीय नागरिकों को इसकी छूट और अधिकार देता है. ऐसे में कानून में अगर आप बदलाव चाहते हैं तो संसद के पास जाएं. इसका अधिकार संसद का ही है.
एक व्यक्ति को एक ही सीट पर चुनाव लड़ने ( एक व्यक्ति एक सीट) का कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 1996 तक एक व्यक्ति कई सीटों पर चुनाव लड़ सकता था. लेकिन अब सिर्फ दो पर ही लड़ सकता है. कई देशों मे सिर्फ एक सीट से ही चुनाव लड़ने का प्रावधान है. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ये संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह इसलिए गलत है, क्योंकि दो जगह से जीत के बाद जिस एक सीट को छोड़ा जाता है. वहां पर दोबारा चुनाव कराना होता है. सभी खर्चों के साथ-साथ वोटर को भी दोबारा पोलिंग बूथ तक जाना पड़ता है. इसलिए यह अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है.
सीजेआई ने इस दलील पर दोटूक कहा कि ये सब देखना विधायिका का काम है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में कोई हस्तक्षेप करने से साफ इंकार करते हुए कहा कि संसद ने 1996 मे ऐसे कानून में संशोधन किया है इसलिए ये याचिका खारिज की जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 33(7) को रद्द करने से इंकार करते हुए कहा कि यह तो उम्मीदवारों को दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, "यह एक नीतिगत मामला है. राजनीतिक लोकतंत्र का मुद्दा है. इस पर संसद को फैसला करना है.
पहले कितनी भी सीटों पर लड़ सकते थे चुनाव
बता दें कि 1996 के पहले तक चुनाव में कोई उम्मीदवार एक साथ कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था. इसकी अधिकतम सीटों की संख्या तय नहीं थी. बस केवल यही नियम था कि जनप्रतिनिधि केवल ही एक ही सीट का प्रतिनिधित्व कर सकता है. 1996 में रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और यह तय किया गया कि अधिकतम सीटों की संख्या दो हो गई.
हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष और अपनी पार्टी के इकलौते सांसद जीतन राम मांझी भी मोदी सरकार में मंत्री बन गए हैं. 44 सालों के पॉलिटिकल करियर में मांझी राज्य सरकार में कई बार मंत्री बन चुके हैं लेकिन पहली बार वो मोदी सरकार में मिनिस्टर बने हैं. मांझी ने एनडीए उम्मीदवार के तौर पर इस बार गया (रिजर्व सीट) से चुनाव लड़ा था और भारी मतों के अंतर से चुनाव जीता था.