
आर्या 3 के एक्टर सिकंदर खेर का दर्द, काम के लिए लोगों को पागलों की तरह मैसेज किया, कोई जवाब नहीं आया
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सिकंदर खेर भले ही बॉलीवुड परिवार से आते हों, लेकिन उनके लिए करियर की राहें आसान नहीं रही हैं. वुड स्टॉक विला से अपनी एक्टिंग की शुरुआत करने वाले सिकंदर मानते हैं, अब जाकर उन्हें पहचान मिलनी शुरू हुई है.
एक्टर सिकंदर खेर ने फिल्म 'वुड स्टॉक विला' से अपना ग्रैंड डेब्यू किया था. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हुई थी. इसके बाद सिकंदर ने जितनी भी फिल्में की, किस्मत ने उनका खास साथ नहीं दिया. इतने लंबे सालों से स्ट्रगल करने के बाद अब जाकर एक्टर सिंकदर खेर को अपनी पहचान मिल पाई है. सिकंदर खुद इस मानते हैं कि वेब सीरीज आर्या ने उनके करियर को नई दिशा दी है.
15 फिल्में की हैं, लेकिन पहचान ओटीटी से मिली
ओटीटी के बदौलत मिली पहचान पर सिकंदर कहते हैं, आप कितनी भी मेहनत कर लें, फिल्में अगर न चले, तो चाहे कितनी अच्छी भी हो आपका काम दुनिया को नहीं दिखेगा. ओटीटी ने कितने लोगों को काम दिया है. मेरी मां हमेशा एक ही चीज कहती रहती है कि एक एक्टर का सबसे बड़ा वरदान यही होता है कि वो व्यस्त रहे. बस आप अपने काम को लेकर डूबे रहें. ओटीटी में काम की भरमार है, तो इसने बिजी होने के मौके दिए हैं. ये केवल एक्टर ही नहीं बल्कि राइटर, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर हर किसी को उड़ने के लिए पंख दिए हैं. अगर मैं बिजी हूं, तो इसकी सबसे बड़ी वजह ओटीटी प्लैटफॉर्म है. मैंने अपने करियर में 15 फिल्में की हैं, लेकिन उस वक्त इतना व्यस्त नहीं रहा, जितना इन दिनों ओटीटी प्रोजेक्ट्स को लेकर मेरी व्यस्तता बढ़ी है. मेरे मां-बाप यही कहते हैं, भईया काम से काम मिलता है. इसलिए काम में कोई ब्रेक नहीं लगना चाहिए. वो दोनों आज भी वही कर रहे हैं.'
मेरे अपने लोग ही मेसेज का जवाब नहीं देते थे चूंकि आप इंडस्ट्री का हिस्सा हैं, तो आपको लेकर धारणा भी हैं कि आप प्रीविलेज्ड होंगे. कितनी सच्चाई होती है? जवाब में सिकंदर कहते हैं, 'मैं आपको इस तरह से एक्सप्लेन करता हूं. ये सारी दुनिया को पता है कि मैं अनुपम खेर और किरण खेर के घर से आता हूं. बचपन से अपने घर में यश चोपड़ा, करण जौहर जैसे लोगों को देखता आया हूं. कह लें, इनके साथ मेरा उठना बैठना रहा है. एक वक्त था, जब मैं काम के लिए लोगों को पागलों की तरह मेसेज किया करता था. उसमें वो सभी शामिल थे, जिन्हें मैं बचपन से जानता था. मैं साढ़े 10 बजे मेसेज करता, उसमें भी इतना कैलकुलेशन था, उन्हें ये न लगे कि मैं सुबह जल्दी में 10 बजे उन्हें मेसेज कर दे रहा हूं और 11 बजे करता, तो ये धारणा बनती कि ये लड़का लेट लतीफ है. इसलिए चुनकर साढ़े दस बजे का टाइम रखा था. मैं मेसेज में लिखता था कि क्या मैं आकर आपसे दस मिनट के लिए मिल सकता हूं. मेरा तीन मिनट का शो-रील रेडी कर रखा है ताकि ज्यादा वक्त नहीं लूंगा.
आप यकीन मानों, किसी का कोई रिप्लाई नहीं आता था. हफ्ते गुजर जाते थे, कई बार महीने लग गए, कोई जवाब नहीं देता था. ये वो ही लोग हैं, जिन्हें मैं दोस्त या अपना करीबी समझता था. यहां प्लस पॉइंट यही था कि चाहे कैसे भी हो, मेरी मीटिंग उनसे कॉमन जगहों में हो जाती थी. उनमें से ज्यादातर के जवाब यही होते थे कि जब कुछ आएगा, तो बताएंगे.













