
अजित पवार की उपलब्धि भी कम नहीं, लेकिन खामोश रहने के बदले उन्हें क्या मिल रहा है? | Opinion
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अजित पवार जानते थे कि अगर चुपचाप बैठे रहे तो उनका हाल भी शिवपाल सिंह यादव और पशुपति कुमार पारस जैसा हो जाएगा. जैसे ही लगा अपना हक छीनना पड़ता है, न तो विचारधारा की परवाह की, न ही परिवार का लिहाज - और एक दिन सब कुछ लेकर वो चैन की वंशी बजाने लगे.
अजित पवार न मुख्यमंत्री पद की रेस में थे, न अभी हैं. सरकारें बदलती रहती हैं. मुख्यमंत्री कोई भी हो, अजित पवार का डिप्टी सीएम बनना पहले से ही पक्का हो जाता है. तब भी जबकि सिर्फ 72 घंटे के लिए सरकार बनती हो, डिप्टी सीएम के रूप में शपथ तो अजित पवार ही लेते हैं.
2019 में अजित पवार ने अपने बूते एक कोशिश की थी. वो देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम बन गये थे. लेकिन, मामला टिकाऊ नहीं लगा, और सुबह के भूले की तरह अजित पवार शाम को घर लौट आये थे. दोबारा लंबी छलांग लगाये, और पूरे बंदोबस्त के साथ घर से निकले. जरूरत के सारे ही सामान लेते गये, बल्कि ये भी कह सकते हैं कि बस इतना ही छोड़ा जिससे कुछ दिन तक जीवनयापन हो सके - और अब तो लगता है नई राजनीतिक गृहस्थी ही बसा ली है.
हाल ही में जब अजित पवार ने दिल्ली में हुई कारोबारी गौतम अडानी वाली मीटिंग का कुछ ब्योरा सार्वजनिक किया था, तो विचारधारा और सत्ता को लेकर भी एक बड़ी बात कही थी. अजित पवार ने कहा था, विचारधारा की परवाह किसको है. सभी को सत्ता चाहिये.
अजित पवार का ये बयान, एक तरह से कबूलनामा था. वो भी तो यही कर रहे हैं. कांग्रेस और एनसीपी की विचारधारा तो एक ही है, लेकिन अब वो बीजेपी के साथ गठबंधन का हिस्सा हैं. राजनीतिक बयान के रूप में ही सही, लेकिन देवेंद्र फडणवीस ने भी तो उनकी विचारधारा के बारे में ऐसा ही बताया था, जब वो योगी आदित्यनाथ का विरोध कर रहे थे.
विरोध तो एक हिसाब से अजित पवार ने एकनाथ शिंदे का भी किया है, ये बोल कर कि वो बीजेपी के साथ हैं. जो हालात हैं, और जो उनकी हैसियत है उसमें जो कुछ वो कर रहे हैं, वो तो सही रणनीति ही लगती है.
अजित पवार ने पहले जो भी पाया था, वो सब पवार परिवार से होने की वजह से मिला था. अब उनके पास जो कुछ भी है, वो उनकी निजी उपलब्धि है - और अब ये देखना है अपनी उसी काबिलियत के बदले वो महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनने पर क्या क्या पाते हैं?

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