Russia-Ukraine war: यूक्रेन में Art of War का सबसे बड़ा मंत्र भूले पुतिन? जंग जीते भी तो अब उसकी कीमत बहुत बड़ी होगी
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Russia-Ukraine war जारी है. यूक्रेन को फतह करने पहुंची पुतिन की सेना को जंग लड़ते 40 दिन हो गए हैं, लेकिन कोई भी बड़ा यूक्रेनी शहर पूरी तरह कब्जे में नहीं आ सका है. यूक्रेन के शहर बमबारी में तबाह हो रहे हैं लेकिन सेना और लोग सरेंडर नहीं कर रहे. युद्ध जितना लंबा खींचेगा रूस के आम लोगों की आर्थिक मुसीबत उसी अनुपात में बढ़ती जाएगी. रूस को और रूसी लोगों को जंग की मार लंबे समय तक भुगतनी पड़ सकती है. अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या यूक्रेन की ताकत को समझने में पुतिन के रणनीतिकारों से गलती हुई? क्या पुतिन के रणनीतिकार Art Of War का मंत्र यूक्रेन में आजमाने में चूक कर गए?
जंग से जुड़ी दो पुरानी कहावतें हैं- 'युद्ध में गति यानी स्पीड के महत्व को वही समझ सकता है जो लंबी लड़ाई के दुष्परिणामों से परिचित हो...' और 'अपनी आजादी के लिए लड़ रहे लोगों के इरादों से टकराना किसी भी सेना के लिए आसान नहीं होता...'
दूसरे विश्वयुद्ध में हिटलर की जर्मन सेना ने हॉलैंड पर हमला बोल दिया. हॉलैंड जैसा छोटा मुल्क कैसे जर्मनी का मुकाबला करता. ऊपर से समंदर के निचले इलाके में बसे होने के कारण बांधों और दीवारों के जरिए उसे हमेशा अपनी रक्षा करनी पड़ती है और अपनी पूरी ताकत वहीं लगानी पड़ती ये अलग समस्या थी. फौज भी बड़ी नहीं, हवाई जहाज भी नहीं, युद्ध सामग्री भी नहीं. हिटलर की सेना ये सोच कर आगे बढ़ी कि बस कुछ घंटों की बात है...कब्जा पक्का है.
हमला हुआ तो हॉलैंड के लोगों ने सोचा कि गुलाम बनने से अच्छा है लड़ते हुए मर जाना. उन्होंने एक तरकीब निकाली कि जिस गांव पर हिटलर की सेना हमला करे समंदर से सटी उस इलाके की दीवार तोड़ते जाओ. गांव तो डूबेगा ही लेकिन हिटलर की सेना भी तबाह होती जाएगी. ये तरकीब कामयाब होती गई. हिटलर की सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा. यहां तक कि हिटलर को भी कहना पड़ा कि जब लोग मरने-मारने का इरादा कर लें तो उनको गुलाम बनाना आसान नहीं. फिर उनकी ताकत बम, गोलों और बंदूकों से कहीं ज्यादा होती है.' आज रूस के राष्ट्रपति पुतिन की शक्तिशाली सेना के आगे डटे यूक्रेन के लोगों की हिम्मत कुछ इसी कहानी को दोहराती दिख रही है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की जिस तरह से रूसी हमले के सामने डटे हुए हैं पूरी दुनिया में उनकी तारीफ हो रही है. इतना ही नहीं इससे यूक्रेनी सेना का मनोबल भी बढ़ा है और जनता में भी नया उत्साह दिख रहा है. यही कारण है कि हजारों की संख्या में आम लोग भी रूस की गुलामी से बचने के लिए वॉलंटियर बनकर युद्ध में उतर चुके हैं. नेता, सांसद, मंत्री, मेयर, सिंगर, खिलाड़ी, मॉड्लस सब युद्ध में हथियार थामकर उतरते दिख रहे हैं. यूक्रेनी लोगों के इस जज्बे को दुनिया सलाम कर रही है. दुनियाभर से डेढ लाख से अधिक वॉलंटियर भी जेलेंस्की की सेना के साथ मिलकर लड़ने यूक्रेन पहुंच गए हैं. इनमें कई देशों के पूर्व कमांडो और सैनिक शामिल हैं जो रूसी हमले को फेल करने के लिए मैदान में उतर गए हैं.
चीनी दर्शनिक सं जू की ऐतिहासिक किताब 'Art of War' में युद्ध के कला-कौशल पर काफी कुछ लिखा गया है. चीनी दार्शनिक सं जू और उनके 200 साल बाद आए भारतीय दार्शनिक चाणक्य की युद्ध कौशल और कूटनीति पर लिखी बातें 2500 साल बाद आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी तब थीं. रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. Art of War में सं जू युद्ध को लेकर लिखते हैं- 'जब लड़ाई असली हो और जीत पाने में देरी हो रही हो, तो हथियार अपनी धार खो बैठते हैं और सैनिकों का जोश ठण्डा पड़ जाता है. लम्बे चलने वाले युद्ध में राज्य के सभी संसाधन उस युद्ध का बोझ उठाने की क्षमता खो देते हैं. याद रखें जब हथियारों की धार मंद पड़ जाए, सैनिक अपना जोश खोने लगें, खजाना खाली हो जाए, ऐसे में आस-पास के राज्य आपकी अवस्था का लाभ उठाने की ताक में रहेंगे.' रूस के सामने भी अब संकट बढ़ता हुआ दिख रहा है.