
Ground Report: पास्टर बने 'पापाजी' और चर्च 'यीशु दा मंदिर'...पंजाब में होम चर्च की बाढ़, ईसाई धर्मांतरण की आंखों देखी!
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देर रात मैं एक कॉल करती हूं. सिरदर्द की शिकायत के साथ. लेकिन किसी अस्पताल नहीं, बल्कि एक प्रेयर-लाइन पर. उस पार की आवाज ‘तौबा की प्रार्थना’ करवाती है. इसके बाद ‘चंगाई की प्रेयर’. आवाज तसल्ली देती है- सिस्टर, आप यीशू को याद करो. दर्द उठे तो फिर कॉल करना. मैंने अलग-अलग नंबरों पर अलग-अलग वक्त में ऐसे कई फोन किए. इमरजेंसी सर्विस की तेजी से काम करते ये नंबर पेंटेकोस्टल चर्चों के हैं. लगभग पूरा पंजाब ऐसे चर्च और मिनिस्ट्रीज से अटा हुआ.
मामूली छींक से लेकर कैंसर...डिप्रेशन से लेकर भूत-भगाई...और मनपसंद साथी से लेकर अमेरिकी वीजा तक...पंजाब के चर्च आपको बहुत कुछ देंगे, बस आप मसीह की शरण में जाइए. गलियों में छोटे-छोटे नामालूम होम-चर्च से लेकर शहर के ऐन बीच एकड़ों में पसरी हुई मिनिस्ट्रीज हैं. यहां पास्टर या पापाजी मिलेंगे, जो सिर पर हाथ धरकर सब पाप हर लेते हैं.
aajtak.in की रिपोर्टर पंजाब की बॉर्डर बेल्ट में पहुंची, जहां उसने खुद जरूरतमंद बनकर ये सारा तामझाम अपनी आंखों से देखा. पंजाब को पहले अलगाववाद ने खाया, फिर चिट्टे ने, और अब धर्मांतरण दीमक बना हुआ है. चंडीगढ़ में बैठे कई स्कॉलर बार-बार ये शिकायत करते मिलेंगे. कई दावे हैं जो सूबे की बदलती डेमोग्राफी की बात करते हैं. साल 2011 में हुए सेंसस में यहां लगभग डेढ़ प्रतिशत ईसाई आबादी थी. कथित तौर पर अब वे बढ़कर 15 फीसदी हो चुके. या शायद कहीं ज्यादा. सिख धर्म की शुरुआत वाले इलाकों में भी ढेर के ढेर करतार सिंह और हरमीत कौर हैं, जिनके घरों में गुरुद्वारा साहिब की तस्वीर हटाकर क्रॉस पर चढ़े जीसस का फ्रेम सजा दिया गया. मिनिस्ट्री में मिला एक शख्स कहता है- परमेश्वर हमें भीतर से बदलने को कहते हैं, बाहर मैं चाहे पगड़ी पहनूं! हकीकत और फसाने के बीच की दूरी को टटोलने हम जालंधर से लेकर पंथक बेल्ट कहलाने वाले तरनतारन भी पहुंचे. यहां कई होम चर्च मिले, जहां पास्टर में रजाई में दुबके हुए मसीह-चर्चा कर रहे हैं. वहीं शहर के बीचोंबीच पूरे साम्राज्य वाली मिनिस्ट्रीज भी दिखीं. वे मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को किस्म-किस्म की प्रेयर करवाते हैं. इतवार का दिन पापाजी यानी पास्टर के चमत्कारों के लिए रिजर्व रहेगा. स्क्रीन पर किसी दुखियारे की कहानी चलेगी, जिसके पैर टूट चुके हों, या शैतान जिसके भीतर घुस खुदकुशी के लिए उकसाता हो.
कहानी खत्म होते-न होते वो शख्स दौड़ता-खिलखिलाता मंच पर आएगा. पांव पंख बन चुके. दुख हवा हो चुका. शुरुआत जालंधर की अंकुर नरूला मिनिस्ट्री से.
लगभग सौ एकड़ में फैली ये मिनिस्ट्री असल में एक पेंटेकोस्टल चर्च है, जिसके पास्टर हैं अंकुर नरूला. प्यार से पापाजी कहलाते इस शख्स के बारे में अनुयायियों का यकीन है कि वे सिर पर हाथ धर दें तो बड़ी से बड़ी मुसीबत खत्म हो जाएगी. जालंधर के खाबंरा गांव में बसे इस राजपाट की झलकियां रास्ते से ही दिखनी शुरू हो जाती हैं.
जगह-जगह पोस्टर, जिसमें पास्टर किसी सभा में चमत्कार दिखा रहे हों, या चंगाई दे रहे हों, या यीशु की महिमा सुना रहे हों.
फोन पर ही मैंने प्रेयर टावर की युवती से सारी डिटेल ले रखी थी. सालों से चले आ रहे भारी माइग्रेन के लिए दुआ पढ़ते हुए लड़की ने बेहद नरमी से सुझाया- अभी तो आराम मिल जाएगा, लेकिन पूरा ठीक तभी हो सकेगा, जब आप मसीह पर यकीन करेंगी. यकीन करने का मतलब, वहां आना और उन्हें सुनना. ब्रेनवॉशिंग के लिए एकदम तैयार होकर मैं वहां के लिए निकल पड़ी. मंगलवार का दिन. आज काउंसलिंग होती है, और अगर आपकी किस्मत ज्यादा ही जोर मारे तो वाइट कार्ड भी मिल सकता है. वाइट कार्ड यानी पास्टर से सीधे मिल सकने का मौका. कुछ सेकंड्स के लिए वे सिर पर हाथ रख दें, इसके लिए भारी मारामारी रहती है. मुझे पहली ही विजिट में वाइट कार्ड मिला. काउसलिंग के बाद कुछ लोग हैरान थे. आपको कैसे कार्ड मिल गया! एक ने कहा- शायद इनका ‘केस ज्यादा हैवी’ हो! इमरजेंसी केस, जिसमें इंसान इतना हार जाए कि मरने-मरने को हो. मैं हां में सिर डुलाती हूं. गांव से काफी पहले से भीड़ दिखने लगती है. मुंह-मुंह में बुदबुदाते लोगों से पता पूछिए तो वे हाथ से इशारा कर देते हैं. दाएं-बाएं नहीं, मसीह का रास्ता सीधा ही जाता है.

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