
125 साल पहले लगी आग ने कैसे कटवा दिए विक्की कौशल-तृप्ति डिमरी के किसिंग सीन? ये है सेंसर की कैंची का इतिहास
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सेंसर बोर्ड ने 'बैड न्यूज' में विक्की कौशल और तृप्ति डिमरी के तीन किसिंग सीन काटकर करीब 27 सेकंड छोटे किए थे. सेंसर बोर्ड पहले भी फिल्मों में कई 'आपत्तिजनक' सीन्स कटवाता रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सेंसर बोर्ड्स 125 साल पहले लगी एक आग की वजह से अस्तित्व में आए? पेश है फिल्म सेंसरशिप का इतिहास.
पिछले साल आई फिल्म 'बैड न्यूज' से जुड़ी एक खबर बहुत चर्चा में रही थी. सेंसर बोर्ड ने फिल्म में विक्की कौशल और तृप्ति डिमरी के तीन किसिंग सीन काटकर करीब 27 सेकंड छोटे किए थे. सेंसर बोर्ड पहले भी फिल्मों में कई 'आपत्तिजनक' सीन्स कटवाता रहा है. कंगना रनौत की फिल्म 'इमरजेंसी' भी सेंसर बोर्ड के पचड़े में ऐसी फंसी थी कि शिड्यूल डेट पर रिलीज ही नहीं हो सकी. फिल्म के मेकर्स और सेंसर बोर्ड का विवाद लगातार खबरों में बना हुआ था.
फिल्मों की सेंसरशिप और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का टकराव अक्सर बहसों में बना रहता है. सेंसर बोर्ड फिल्म में कुछ कट्स लगाने की सलाह देता है और फिल्ममेकर्स इसे अपनी आजादी पर लगाम लगाने की कोशिश बताते हैं. मगर क्या आप जानते हैं कि ये खेल आखिर शुरू हुआ कैसे? सिनेमा पर सेंसर बोर्ड की कैंची चलनी कब शुरू हुई? इस पूरे मामले की जड़ में आग लगने का एक ऐसा हादसा है जो 125 साल से भी पहले हुआ था. इस हादसे ने सेंसरशिप की वो नींव रखी, जिसकी वजह से आज भारत समेत कई देशों के फिल्म सेंसर बोर्ड, फिल्मों पर कैंची चलाते रहते हैं. चलिए बताते हैं क्या है सिनेमा में सेंसरशिप का इतिहास...
पेरिस के एक चैरिटी इवेंट में लगी वो ऐतिहासिक आग फ्रांस के एलीट लोगों ने 1885 में एक चैरिटी इवेंट शुरू किया था, जिसे Bazar de la Charité कहा जाता था. अलग-अलग लोकेशंस पर होने वाले इस इवेंट में हुई कमाई को चैरिटी के कामों में खर्च किया जाता था. 1897 में ये इवेंट फ्रांस की राजधानी, पेरिस के एक हिस्से में चल रहा था. इवेंट को एक मध्यकालीन स्ट्रीट की थीम देने के लिए लकड़ी, कार्डबोर्ड और कपड़ों वगैरह की मदद से एक वेयरहाउस जैसा स्ट्रक्चर बनाया गया था.
आज हम जिसे सिनेमा कहते हैं वो मूव करने वाली इमेज की शक्ल में, अस्तित्व में आने लगा था. आगे क्या हुआ वो जानने से पहले एक बार सिनेमेटोग्राफ का बेसिक समझ लेते हैं. मोटा-मोटा समझें तो एक फिल्म रील पर इमेज रिकॉर्ड होती थीं. फिर लाइमलाइट को लेंस की मदद से इमेज पर इस तरह फोकस किया जाता था कि रील पर रिकॉर्ड इमेज, सामने स्क्रीन पर साफ तरीके से प्रोजेक्ट हो. इसमें वैसे तो कई अलग-अलग डिवाइस और इक्विपमेंट लगते थे, मगर पूरे सेटअप को सिनेमेटोग्राफ कहा जाता था. आज इसी सेटअप को सिनेमा कहते हैं.
शुरुआत में इमेज रिकॉर्ड करने के लिए जो फिल्म इस्तेमाल होती थी वो नाइट्रेट की होती थी. ये ऐसा मैटेरियल था जो बहुत ज्वलनशील होता है और बहुत ज्यादा हीट होने पर खुद ही जलने लगता है, किसी लौ की जरूरत ही नहीं पड़ती. ऊपर से प्रोजेक्शन के लिए जो लाइमलाइट इस्तेमाल होती थी, उसमें खुद में बहुत ताप होता था. इस पूरे सिस्टम में हीट कंट्रोल करना तब बहुत बड़ा चैलेंज था, जिसके फेल होने की वजह से ही करीब 100 साल पहले सिनेमा में आग लगने की घटनाएं बहुत ज्यादा होती थीं.
तो, 1897 में पेरिस के Bazar de la Charité इवेंट में एक सिनेमाटोग्राफ इवेंट की हाईलाइट था. अबतक लोगों ने ठहरी हुई तस्वीरें ही देखी थीं और अब मूव करने वाली इमेज देखने के लिए लोग एक्साइटेड थे. ये इवेंट किस तरह के स्ट्रक्चर में हो रहा था, ये आप ऊपर जान ही चुके हैं. दोपहर में सिनेमाटोग्राफ के इक्विपमेंट ने आग पकड़ ली. लकड़ी का वो वेयरहाउस ऐसी किसी घटना के लिए तैयार ही नहीं था.

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