
12 साल से नोएडा में घर का सपना, बिल्डर और अथॉरिटी की लड़ाई में खरीदार पर गिरी गाज... Inside Story
AajTak
सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश को पलटते हुए अथॉरिटी की मांग मानकर कम्पाउंड इंटरेस्ट पर जमीन का लेट पेमेंट लेने का अथॉरिटी का नियम सही करार दे दिया. अब इस फैसले के बाद नोएडा अथॉरिटी का बिल्डर्स के ऊपर 19000 करोड़ रुपये बकाया हो गया है, जिसे नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी अपनी जीत बता रही हैं.
नोएडा की एक सोसायटी में अमित सिंह बीते 7 साल से रहते हैं. करीब 12 साल पहले उन्होंने इस प्रोजेक्ट में घर बुक कराया था. यहां पर उस वक्त कीमत 3 हजार रुपये प्रति वर्ग फीट थी. धीरे धीरे प्रोजेक्ट बनना शुरू हुआ और अमित तय वक्त पर अपना बकाया भुगतान बिल्डर की डिमांड पर करते रहे. अमित की तरह तमाम बायर्स किश्तों का पेमेंट करते रहे. लेकिन बिल्डर जिसने खुद नोएडा अथॉरिटी से किश्तों पर जमीन ली थी, वो अपने हिस्से का अमाउंट अथॉरिटी को समय पर नहीं चुका रहा था.
जमीन आवंटन की शर्तों के मुताबिक नोएडा अथॉरिटी लेट पेमेंट पर कम्पाउंट इंटरेस्ट वसूलने की हकदार थी और पहली किश्त भी लेट पेमेंट की दशा में कम से कम 15 या 24 फीसदी की दर से चुकानी थी. ऐसे में बिल्डर ने जो जमीन 125 करोड़ रुपये की ली थी और जिसका वो 76 करोड़ रुपये भुगतान कर चुका था उसका आज 49 करोड़ का बकाया ब्याज पर ब्याज लगने से बढ़कर 600 करोड़ हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले फैसले में 8% ब्याज तय किया ऐसे में इस मुश्किल से बचने के लिए बिल्डर्स ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. वहां से करीब 2 साल पहले बिल्डर्स को जीत मिली और सुप्रीम कोर्ट ने 8% की दर से लेट पेमेंट लेने का आदेश जारी कर दिया. लेकिन इस फैसले के खिलाफ अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल कर दी. इस पर सुनवाई पूरी होने के बाद करीब 1 साल तक फैसला सुरक्षित रखा रहा. लेकिन इसके बाद जब फैसला 7 नवंबर को आया तो सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश को पलटते हुए अथॉरिटी की मांग मानकर कम्पाउंड इंटरेस्ट पर जमीन का लेट पेमेंट लेने का अथॉरिटी का नियम सही करार दे दिया. अब इस फैसले के बाद नोएडा अथॉरिटी का बिल्डर्स के ऊपर 19000 करोड़ रुपये बकाया हो गया है जिसे नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी अपनी जीत बता रही हैं.
फंस जाएंगे अथॉरिटीज के बकाया भुगतान! कोर्ट के फैसले के बाद नोएडा अथॉरिटी और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की कैलकुलेशन के हिसाब से उन्हें 19 हजार करोड़ रुपये जमीन के आवंटन के बदले मिलेंगे. ये रकम मूल रकम के भुगतान में देरी पर लगे ब्याज और फिर उसपर लगे ब्याज और पेनाल्टी वगैरह को जोड़कर बनती है. ये अंतर कितना बड़ा है ये समझने के लिए हमने एक बिल्डर से बात की जिसको लेट पेमेंट पर ऊंची दर से ब्याज लगने की वजह से अब 230 करोड़ रुपये चुकाने हैं. वहीं अगर 8% की दर से उसे जमीन का बकाया चुकाना होता तो ये रकम केवल 47 करोड़ रुपये होती.
अब इस बिल्डर के पास 230 करोड़ का भुगतान करने के लिए ना तो फ्लैट्स बचे हैं और ना ही इस प्रोजेक्ट में कोई खाली जमीन है जिसे बेचकर वो अथॉरिटी का बकाया चुका सकेगा. खास बात है कि जिस समय ये बिल्डर फ्लैट्स बेचकर पैसे जुटा रहा था और अथॉरिटी को कोई भुगतान नहीं कर रहा था तो उस वक्त ना तो अथॉरिटी ने पैसे वसूलने में कोई सख्ती की और ना ही उसको फ्लैट्स बेचने से रोका और ना ही उसका जमीन आवंटन निरस्त किया. ऐसे में मासूस ग्राहक तो बिल्डर की बेईमानी और अथॉरिटी की लापरवाही के शिकार हो गए और बैंकों से लोन लेकर, ज्वैलरी गिरवी रखकर अपना सब कुछ एक अदद आशियाने की आस में बिल्डर के हवाले करके खाली जेब हो गए.
यूनिटेक के 500 करोड़ बने 10 हजार करोड़ अथॉरिटी के इस ब्याज वसूली के फॉर्मूले की एक मिसाल यूनिटेक के केस से समझनी बेहद आसान है. नोएडा में यूनिटेक को कई सेक्टर्स में जमीन अलॉट की गई थी. इसके लिए कुल भुगतान 1600 करोड़ रुपये का था. इसमें से यूनिटेक ने शुरुआत में नियमों के मुताबिक सभी किश्तों का समय से भुगतान किया और 1100 करोड़ रुपये चुका भी दिए. लेकिन इसके बाद यूनिटेक ने बचे हुए 500 करोड़ में से एक भी रुपया नहीं चुकाया और आज ये लेट पेनाल्टी और ब्याज लगते लगते करीब 10 हजार करोड़ के नजदीक पहुंच गया है. यहां तक की यूनिटेक का मामला NCLT में पहुंच गया और अब इसके प्रमोटर्स का कंपनी पर कोई अधिकार नहीं है और सरकार की निगरानी में इस कंपनी का कार्य चल रहा है. लेकिन इसके हजारों बायर्स को बरसों से ना तो घर मिला है और जिनको मिला है उनमें से बहुतों की रजिस्ट्री तक नहीं हुई है. ऐसे में अब अगर कोर्ट के आदेश से 10 हजार करोड़ की वसूली का आदेश बरकरार रहेगा तो फिर अथॉरिटी 500 करोड़ और इस पर लगने वाले सामान्य ब्याज को भी कैसे वसूलेगी ये एक बड़ा सवाल है.













