
साइलेंट फिल्मों के दौर में ही पर्दे पर आई रामायण, एक ही एक्टर ने निभाया राम-सीता का किरदार
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राम मंदिर के उद्घाटन में अब कुछ ही दिन बाकी हैं. पूरा माहौल राममय हो चुका है और प्रभु श्रीराम के साथ-साथ हर कोई राम कथा के बारे में चर्चा कर रहा है. भगवान राम की कथा सिनेमा में भी कई बार आ चुकी है. आइए बताते हैं उस पहली फिल्म के बारे में जो रामायण पर बेस्ड थी.
22 जनवरी को अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होगी और इसी के साथ भगवान राम के मंदिर का उद्घाटन भी होगा. इस शानदार इवेंट के लिए एक तरफ अयोध्या में जोरों-शोरों से तैयारियां की जा रही हैं, वहीं इस राममय माहौल में जनता में भी राम नाम की लहर खूब चल रही है. भगवान राम की कथा को जनता तक पहुंचाने में सिनेमा का योगदान भी बहुत बड़ा रहा है. बड़े पर्दे पर राम कथा के आने का सिलसिला उस दौर में ही शुरू हो गया था, जब भारत में फिल्में बननी शुरू हुई और उनमें आवाज नहीं होती थी.
साइलेंट फिल्मों के उस दौर में भी रामायण पर बेस्ड एक फिल्म ऐसी आई जिसने थिएटर्स के बाहर दर्शकों की लंबी-लंबी लाइनें लगवा दीं. बताया जाता है कि मुंबई के थिएटर्स में ये फिल्म 23 हफ्तों तक चलती रही. और इससे ऐसी कमाई हुई कि उस समय पैसों से लादे बोरे बैलगाड़ी पर लादकर प्रोड्यूसर के घर भेजे जाते थे. इस फिल्म का नाम है 'लंका दहन' और ये 1917 में रिलीज हुई थी. आइए बताते हैं इस फिल्म के बारे में...
भारतीय सिनेमा के जनक ने बनाई थी रामायण पर फिल्म भारत की पहली फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' (1913) बनाने वाले दादासाहब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जनक भी कहा जाता है. रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि दादासाहब के दिमाग में सिनेमा बनाने का आईडिया ही इसलिए आया था कि वो एक दिन भगवान राम और कृष्ण की कहानियां सिनेमा के पर्दे पर उतार सकें.
दादासाहब ने जब सिनेमा हॉल में 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' (1906) देखी तो स्क्रीन पर जीसस के चमत्कार देखकर उन्हें लगा कि इसी तरह भारतीय देवताओं राम और कृष्ण की कहानियां भी पर्दे पर आ सकती हैं. और इसी विचार के साथ उन्होंने 'मूविंग पिक्चर्स' के बिजनेस में कदम रखा. भारतीय माइथोलॉजी पर ही बेस्ड 'राजा हरिश्चंद्र' बनाने के बाद दादासाहब ने अपनी दूसरी फिल्म की कहानी के लिए 'रामायण' को चुना.
जो राम, वही सीता 'राजा हरिश्चंद्र' में रानी तारामती के किरदार की कास्टिंग करने में दादासाहब को बहुत परेशानी उठानी पड़ी. उस समय फिल्में अपने आप में एक हौव्वा थीं और कैमरा उससे भी ज्यादा. खुद को सभ्य और कुलीन मानने वाले परिवार महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर नाराजगी जाहिर करते थे, यहां तो बात फिल्म की थी, जिसे हजारों लोग देखते. दादासाहब ने महिलाओं की कास्टिंग का जो ऐड निकाला, उसे पढ़कर कुछ सेक्स-वर्कर्स ने जरूर दिलचस्पी दिखाई, मगर उनमें वैसा लुक नहीं था जो किरदार के लिए चाहिए था.
इसी तलाश में परेशान फाल्के एक दिन ग्रांट रोड के एक रेस्टोरेंट में चाय पी रहे थे और वहां उनकी नजर रेस्टोरेंट में काम करने वाले कृष्ण हरी उर्फ़ अन्ना सालुंके पर पड़ी. इस लड़के की कद काठी बहुत बहुत मस्क्युलर नहीं थी और उसके हाथ भी पतले थे. फाल्के को आईडिया आया... उन्होंने 10 रुपये महीने की तनख्वाह पर काम करने वाले सालुंके को, 15 रुपये की तनख्वाह का वादा किया और उन्हें अपने साथ ले आए. और इसी अन्ना सालुंके ने भारत की पहली फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' में रानी तारामती का, पहला फीमेल किरदार निभाया.

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